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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

कलाकार...................

पुराने पन्नों से
२२दिसम्बर.2008






तुम एक कलाकार हो!
हाँ !
वाकई में...
तुम एक कलाकार हो !
एक कलाकार की तरह
भावुक,संवेदनशील.....
इसीलिए तो मैंने खुद को
कच्ची,गीली मिटटी सा
सौंप दिया था तुम्हें!
कि थोड़ा प्यार.....
थोड़ा कोमल सहारा तुम्हारे हाथ का.......
और फिर जैसी चाहो
मूरत गढ़ लो तुम अपने मुताबिक..
कर लो मेरा श्रृंगार.....
जैसे तुम चाहो...!
और आज तुम्हारी वह मूरत तुम्हारे सामने है
एकदम तुम्हारे मुताबिक....
तुम ने खुद की तरह
उस कच्ची मिटटी को
अपना आकार लेने के लिए छोड़ दिया...!
जब समय था हाथ के कोमल सहारे का...
तुमने समय की धूप में
उसे तपने के लिए छोड़ दिया !
मन के गीलेपन को
शब्दों की बौछार से सुखा दिया !
आज वह मूरत.............
तुम्हारी मनचाही मूरत..
तुम्हारे सामने है,
तुम्हारे सारे सवालों-जवाबों के साथ
मगर एकदम पक्की...
यह टूट तो सकती है
पर पुराना वो मिटटी का गीलापन
गायब हो गया है कहीं..
हाँ,तुम एक कलाकार ही हो
तुम मूरत तो गढ़ सकते हो
टेढ़ी-मेढ़ी..
चित्र तो उकेर सकते हो
सादे-सफ़ेद कनवास पर..
पर उस चित्र की जीवन्तता
और मूरत में इंसानी भावुकता और संवेदनशीलता
नहीं डाल सकते हो कभी...!
एक कलाकर...................
एक अच्छा कलाकार
इससे ज्यादा और कर भी क्या सकता है ???????

***पूनम***

5 टिप्‍पणियां:

  1. अनेकों अर्थ से परिपूर्ण है पूनम जी आपकी कविता /
    माँ बेटी पर लागू करो ,फिट बैठती है
    भक्त भगवान् पर फिट करो ,फिट बैठती है ॥
    नए साल की बधाई /

    जवाब देंहटाएं
  2. कच्ची मिट्टी से बनायीं कलाकार ने जो रचना ...शायद रचनाकार ही उसके तेज को सह नहीं प् रहा है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

    मेरे ब्लॉग पर आने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर अभिव्यक्ति. .
    कृपया मेरी नई पोस्ट देखें

    जवाब देंहटाएं
  4. man se kalaakaar hee aisee kavitaa gadh saktaa hai
    abhibhoot kar diyaa
    aur kyaa kahoon.....

    जवाब देंहटाएं