बड़ा अजीब रिश्ता है हमारा भी
तुम चाहते हो करीब आना
अपने तरीके से...
कुछ सुनना,कुछ सुनाना
लेकिन अपने तरीके से....
प्यार देना और लेना
वह भी अपने तरीके से.....
चाहते हो कि तुम्हारे बारे में
जानूं मैं वो सब कुछ
जो तुम महसूस करते हो,
अपनी संवेदनाओं,
अपनी अनुभूतियों को
बांटना चाहते हो लेकिन....
सब-कुछ अपने तरीके से,
चाहते हो तुम्हारे मन में
क्या चल रहा है
मैं खुद ही जान जाऊं,
खुद ही समझ जाऊं...
लेकिन इन सब में
मैं कहाँ हूँ....???
शायद तुमने...
यह जानने और समझने की
न कभी कोशिश ही की
और न ज़रुरत ही समझी,
तुमने चाहा मुझे हमेशा
अपने शब्दों में बांधना
और मेरे ज़ज्बातों,
मेरे एहसासों को भी शब्द देना
लेकिन प्रेम कभी शब्द में बंधा है क्या...??
तुम मुझे मेरे शब्दों में ही खोजते रह गए..
और खुद को शब्दों में समझाते चले गए !
लेकिन....
अपने लिए मेरी आँखों में
प्यार न पढ़ पाए तुम...
बिन बात ही लुढ़क आये
मेरे गालों पर आंसुओं में
खुद को न डुबा पाए तुम....
जहाँ सिर्फ तुम थे......
सिर्फ तुम........!!