कई साल पहले एक बसंती बयार मेरे जीवन में आई
और मुझे बाहर-भीतर सब जगह महका गई.....!!
आज भी उसकी खुशबू है मेरे आस-पास !!
एहसास है उसका मेरे साथ...
हर समय....हर जगह !!
कभी किसी रूप में......कभी किसी रूप में !
जब भी आँखें बंद करूँ महसूस कर लेती हूँ उसे !!
ये कुछ भावनाएं हैं जो शब्दों में ढल गईं....
लम्बा समय बीत गया.
१९८२-८३ में लिखी हुई...
ये मेरे ज़ेहन में अभी भी ताज़ा हैं !!
पुराने पन्नों से --
तुम्हारे लिए..........
मेरी हर नज़्म
तुमसे-
तुम्ही से तो
शुरू होती है.
कभी दूर जाओ
मेरे ख्यालों से
तो कुछ और भी
लिखने की सोंचूं मैं !!!!!
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तुम्हारे नाम के साथ ही-
जुड़ी हैं चंद यादें !!
जो हमेशा ही
मेरे मन को
हौले से छू कर
कुछ कहती है.
और मैं ?
मैं यूं ही चुपचाप...
सुनती रहती हूँ उनकी आवाजें...
न जाने कितनी देर....
यूं ही बठी रहती हूँ में,
इसी भ्रम में--
कि जैसे तुम कुछ कह रहे हो
चुपके से मेरे कानों में!!!!
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कुछ कहो प्रिय !!!
कौन हो तुम??
दे व्यथित मन को अपरिमित-
सांत्वना तुम हो गए गुम!!!
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जब याद करती हूँ तुम्हें-
तो...
बेचैन हो उठती हूँ एकपल को,
जब भूलना चाहती हूँ तुम्हे..
तुम और याद आते हो मुझे !!
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तुम्हारी तस्वीर को
सामने रख कर
कुछ लिखने की
कल्पना करना भी
कितना बड़ा पागलपन है ???
फिर भी--
जी चाहता है
यही पागलपन करने को भी.....
कभी- कभी !!!!!!!!
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तुम्हें अपने पास
पाने का एहसास भी
कितना सुखद होता है !!
ये मैंने अब जाना है
जब कि-
तुम ख्यालों में
पास होते हो मेरे !!!
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वे सब छन सपने लगते हैं..
जो तेरे साथ गुजारे हैं,
वे सब छन अपने लगते हैं..
जो तुझसे विलग गुजारे हैं.
एक व्याकुलता,बेचैनी सी
भर जाती मेरे तन-मन में,
जब-जब पाया मैंने तुझको
अपने सपनों के आँगन में.
पा कर तुमको अपने समीप
भर आते मेरे नैन प्रिये !!
कुछ पूछो मत तुम,आज सुनो..
मेरे नैनों के बैन प्रिये !!!
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कभी--
ढलते सूरज के साथ-साथ
गहराती संध्या कि देहरी पर...
हौले-हौले
कदम रखते हुए
तुमसे टकरा गई थी मैं !!
मैं कुछ सकुचाई थी,
पर तुम......
पहले तो चौंके,
फिर अचानक ही-
खिलखिला कर हंस पड़े थे.
वह निर्दोष खिलखिलाहट
अब भी, जब-तब
मेरे कानों में गूँज जाती है,
तब--
ऐसा लगता है मुझे.....
कि जैसे में एक बार फिर
यूँही अनमनी सी चलते-चलते
टकरा गई हूँ तुमसे.....
अचानक ही !!!
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भोर की लाली के साथ..
जीवन में एक किरण चमकी
आशा की.
चहचहाती चिड़ियों ने
एक नया सुर दिया
मेरे संगीत को.
सुगन्धित पवन ने
फूंक दिए प्राण...
मेरे तन-मन में.
और---
रात की सारी व्याकुलता
एकबारगी दूर हो गई
यह सुन कर कि-
तुम आने वाले हो !!!
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कौन आया था न जाने
स्वप्न में मुझको जगाने ?
देखती हूँ स्वप्न जिसके
जागते-सोते हुए मैं,
क्यूँ मुझे बेचैन कर वह
छुप गया मेरे ह्रदय में !!
आँख लगते ही समा चुपके से
मेरी पलक में वह,
और हौले से मुझे छू
क्यूँ लगा मुझको जगाने ??
आज आए थे तुम्ही,प्रिय !
स्वप्न में मुझको जगाने !!!
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जब भी कालबेल बजती है
तो---
यही सोचती हूँ मैं..........
कि-
दरवाज़ा मैं खोलूँ
और--
सामने तुम हो !!!