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शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

समर्पण....




समर्पण....

मेरी पूजा, मेरा अर्चन
सब कुछ तेरा, तुझको अर्पण !
ये मन तेरा ही मंदिर है
इसमें तेरी ही मूरत है !
मेरी साँसें, मेरा जीवन
मेरे पतझड़, मेरे उपवन !
जो है..तूने ही दिया मुझको
सर्वस्व समर्पित है तुझको !
कुछ पुष्प भावनाओं के हैं
कुछ अश्रु संवेदनाओं के हैं !
हैं अक्षत, दीप यही मेरे
रोली, चन्दन हैं धूप मेरे !
आँचल में तेरा प्यार लिए
मानो सारा संसार लिए !
तेरी देहरी, तेरा द्वारा
सर्वस्व मेरा, संबल सारा !
क्या देगा ये संसार मुझे..
तूने जो दी मुस्कान मुझे !
मेरे ईश्वर, आराध्य मेरे !
मेरे प्रेमी, सर्वस्व मेरे !
ये सब तूने ही दिया मुझको
सम्पूर्ण समर्पित हूँ तुझको...!!


सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

दीपावली की शुभ-कामनाएं.....

कुछ ऐसा महसूस किया अपने इर्द-गिर्द
कि ये टूटी-फूटी पंक्तियाँ लिखा गया कोई....
समाज के संस्कारों की दुहाई देने वाला जब
खुद ही उन को न माने तो, क्या करे कोई.....??


कामनाएं........


जो खुद को समझते हैं बुद्धिमान और ज्ञानी !
वो दूसरों को साधारण इंसान भी नहीं समझते हैं !!

उनके लिए अपनी बातें,अपने विचार ही सबसे ऊपर होते हैं !
वो आम इंसान के विचारों को क्षुद्र समझ कर हंसते हैं !!

क्या हुआ जो समाज और संसार उनके विचार से मेल नहीं खाता ?
वे खुद भी तो तमाम लोगों की सोचों से मेल नहीं खाते हैं !!

वो हंसते रहते हैं बस दूसरों की बातों पर !
लेकिन बर्दाश्त नहीं होता जब दूसरे उनपे हंसते हैं !!

कभी नज़र जो खुद पे डालें तो गज़ब हो जाए !
या खुदा! तेरा  करम कभी तो हम इंसानों पर भी हो जाये...!!

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.....



ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.....

खुदा की नेमतें हैं ये, इबादत की तरह लो तुम..
न रोको तुम इसे, ये जिन्दगी भरपूर जी लो तुम !

गयी गर जिन्दगी तो ये,  पलट कर फिर न आयेगी..
अभी जी लो,यहीं जी लो, इसे बाँहों में ले लो तुम !

तुम्हारी जिन्दगी मोहताज कब से हो गयी जानां..?
तुम्हारी थी तुम्हारी है, ये कब तुमने था पहचाना..??

न होना अब कभी नासाज़ अपनी रूह से जानां..!!
ज़रुरत जब लगे मेरी, हमारे पास आ जाना...!!

जलाएंगे शमा उम्मीद की मिल कर के हम दोनों..
जो  थे दुश्मन,रहें दुश्मन ! फिकर क्यूँ कर करें दोनों !!

हमारी जिन्दगी पर शौक से तोहमत लगा लें  वो !
खुदा बक्शे उन्हें किस्मत ! गिरेबाँ अपने झांकें वो !!




रविवार, 16 अक्टूबर 2011

कुछ एहसास हमारे....

इमरान साहेब और विशाल जी....
मेरे ब्लॉग पर नियमित आने का शुक्रिया !!
कुछ एक से हालत..ज़ज्बात....
आपको शुक्रिया कहने के लिए जो लिखना शुरू किया
तो कुछ इस तरह लिखा गया मुझसे...
ये मैंने नहीं लिखा बल्कि आपने लिखवाया है  
इसलिए ये रचना आप दोनों को समर्पित है.... 




कुछ एहसास हमारे....


पत्थरों के शहर में
उबड़-खाबड़ चट्टानों के बीच भी
कुछ एहसास बचा के रखे हैं हम सबने...!
कुछ अपने से,कुछ बेगाने से
कुछ अनमने से, कुछ पहचाने से,
सबसे छुपा के, कहीं भीतर सजा के,
दुश्मनों की नज़र से बचा के,
बददुआवों  पर पर्दा गिरा के.....
पंडितों और ज्ञानियों के ज्ञान से भी बचा के !!
कुछ सहमे, कुछ सकुचाए..
कुछ मासूम से, कुछ कुम्हलाए..
कुछ हरे-भरे, कुछ मुरझाये...
कुछ हँसते  हुए,कुछ शर्माए,
अपनी ही खुशबू से हमने जो महकाए..!
बाकी सब एहसासों पर
कब्ज़ा जमा कर बैठे हैं वो...(सब)
लेकिन इन पर केवल हमारा हक है...!!
ये एहसास हैं बस हमारे....
न तुम्हारे , न किसी और के !
बस, दूर ही रखो इनसे अपने आप को
वर्ना इन पर भी दिखावे के रंग चढ़ जायेगें,
ज्ञानी तो ये हो जायेंगे लेकिन
जिन्दगी जीना भूल जायेंगे...!
फिर अपनों में भी बैठ के
खोखली हँसी हँसना 
इन्हें आ जायेगा,
हर रिश्ते,हर  सम्बन्ध  के साथ  
जोड़-घटाना भी इन्हें आ जायेगा !
न जाने   कितने तानों  और उलाह्नाओं से
बचा के रखा है इन्हें हमने...!
ये केवल हमारी अमानत हैं
फिर क्यों इन पर नज़र गड़ा रखी है तुमने  !
अब छोड़ो भी ....
थोड़ा तुम भी आराम करो
और रहने दो चैन से हमें भी !
ये एहसास हैं केवल हमारे
तो तुम्हारे एहसास भी होंगे कुछ ऐसे ही.....!!



मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

उसने कहा था.....









उसने कहा था...
यह जिन्दगी एक रंगमंच है,
यहाँ हर इंसान,हर रिश्ता
हर अनुभूति और हर संवेदना
एक छलावा है,एक दिखावा है !
जीना है सुख से तो
बस,प्रैक्टिकल बन जाओ,
मेरे साथ रहती हो तो
सारे एहसासों को ताख पर रखो
अरे,कुछ तो मुझसे सीखो !
देखो,मैं कैसे हर सम्बन्ध
हर रिश्ते और एहसास से मुक्त हूँ !
मैं खुद नहीं फंसता हूँ,
बस अपना काम करता हूँ.
प्रैक्टिकल हूँ....
इसीलिए हर इमोशन से दूर रहता हूँ !!
तुम भी जिन्दगी के इस रंगमंच पर
जब नाटक करना सीख जाओगी
तो भावनाओं के इस कष्ट से
सहज ही मुक्ति पा जाओगी !
फिर जीना होगा कितना आसान
न कोई बंधन,न होगी तुम परेशान !!
और फिर उसी के साथ
मैंने भी उसी की तरह
जीना सीख लिया है !
एक तरह से....
कई एहसासों और ज़ज्बातों से
धीरे-धीरे किनारा कर लिया !! 
फिर भी.....
कहीं भीतर
कुछ ज़ज्बात,कुछ एहसास
अभी भी जिंदा हैं...
जो नितांत मेरी धरोहर हैं......!!


शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

अजीब संयोग.......




अजीब संयोग है....
हजारों साल बीत गए
राम और कृष्ण को हुए,
सीता और राधा को हुए...!
लेकिन हम जब भी
उदाहरण देते हैं आज भी
किसी नारी को 
पतिव्रता की तो
सीता से.....!
लेकिन प्रेम के लिए
राधा का उदाहरण देकर
मान्यता न दे पाए...!!
क्यों.....???
गर देखा जाए तो
सीता में प्रेम लुप्त है
और राधा में पतिव्रता...!
और पुरुष विवाह  होते ही
राधा सा प्रेम तो  
भूल जाता है लेकिन
पत्नी को सीता की
पतिव्रता ही समय-समय पर
याद दिलाता है....!!
लेकिन आज भी
हम पुरुषों को पत्निव्रता के लिए
राम का उदाहरण  न दे पाए !
आज भी अपने लिए
सीता सी पत्नी चाहने वाले
ज्यादातर पुरुष
अपने प्रेम  के लिए  
कृष्ण का ही
उदाहरण देते नज़र आते हैं ! 
क्योंकि वहां सुविधा है,
कोई बंधन  नहीं है...
न विवाह का, न रिश्ते का
न  परिवार का, न  समाज का !!
यहाँ एक  खुलापन है...
जो हर स्वभाव से,
हर परिवेश से,
हर परिस्थिति से
और हर व्यक्ति से
कहीं न कहीं 
मेल  खा ही जाता है !!
और हमारे समाज में
बेचारा राम...
अपना एक पत्नीव्रता का व्रत लिए
उदाहरण बनने से रह जाता है...!!