इमरान साहेब और विशाल जी....
मेरे ब्लॉग पर नियमित आने का शुक्रिया !!
कुछ एक से हालत..ज़ज्बात....
आपको शुक्रिया कहने के लिए जो लिखना शुरू किया
तो कुछ इस तरह लिखा गया मुझसे...
ये मैंने नहीं लिखा बल्कि आपने लिखवाया है
इसलिए ये रचना आप दोनों को समर्पित है....
कुछ एहसास हमारे....
पत्थरों के शहर में
उबड़-खाबड़ चट्टानों के बीच भी
कुछ एहसास बचा के रखे हैं हम सबने...!
कुछ अपने से,कुछ बेगाने से
कुछ अनमने से, कुछ पहचाने से,
सबसे छुपा के, कहीं भीतर सजा के,
दुश्मनों की नज़र से बचा के,
बददुआवों पर पर्दा गिरा के.....
पंडितों और ज्ञानियों के ज्ञान से भी बचा के !!
कुछ सहमे, कुछ सकुचाए..
कुछ मासूम से, कुछ कुम्हलाए..
कुछ हरे-भरे, कुछ मुरझाये...
कुछ हँसते हुए,कुछ शर्माए,
अपनी ही खुशबू से हमने जो महकाए..!
बाकी सब एहसासों पर
कब्ज़ा जमा कर बैठे हैं वो...(सब)
लेकिन इन पर केवल हमारा हक है...!!
ये एहसास हैं बस हमारे....
न तुम्हारे , न किसी और के !
बस, दूर ही रखो इनसे अपने आप को
वर्ना इन पर भी दिखावे के रंग चढ़ जायेगें,
ज्ञानी तो ये हो जायेंगे लेकिन
जिन्दगी जीना भूल जायेंगे...!
फिर अपनों में भी बैठ के
खोखली हँसी हँसना
इन्हें आ जायेगा,
हर रिश्ते,हर सम्बन्ध के साथ
जोड़-घटाना भी इन्हें आ जायेगा !
न जाने कितने तानों और उलाह्नाओं से
बचा के रखा है इन्हें हमने...!
ये केवल हमारी अमानत हैं
फिर क्यों इन पर नज़र गड़ा रखी है तुमने !
अब छोड़ो भी ....
थोड़ा तुम भी आराम करो
और रहने दो चैन से हमें भी !
ये एहसास हैं केवल हमारे
तो तुम्हारे एहसास भी होंगे कुछ ऐसे ही.....!!