बात दिल की सुना गया कोई...
आस फिर से जगा गया कोई...!
राज़ अब तक छुपाये बैठे थे...
आज सबको बता गया कोई...!
राबिता कुछ न कुछ तो होगा ही...
सारे रिश्ते निभा गया कोई...!
इक नदी मुद्दतों से सूखी थी...
चन्द कतरे बहा गया कोई...!
ज़िन्दगी की उदास राहों में...
ख़्वाब रंगीं सजा गया कोई...!
कुछ तो है रूठने मनाने में...
शबनमी गुल खिला गया कोई...!
रात 'पूनम' की दिल ने दस्तक दी..
बन के मेहमान आ गया कोई..!
***पूनम***
भाषा कोई भी हो..
उदासी छुपाये नहीं छुपती,
और पराजित चेहरा..
लाख रोशनी के बाद भी
बुझा सा ही दीखता है...!
सपनों का अस्तित्व नकारना..
न तुम्हारे बस में है,
और न मेरे...!
कोई भी शक्ति कारगर न होगी प्रिये...!
आँखों में उतर आती है..
माथे की बेचैनी,
और आँखें पढ़ना...
बहुत ही आसान होता है...!
चलना तो होगा ही..
चाहे कोई भी मार्ग हो...!
पगडंडी बनाने वाले भी..
ख़्वाब में राजमार्ग की चाह रखते हैं..!
हाँ, मगर नदियाँ तो...
राजमार्गों के नज़दीक से गुज़रती ही नहीं..!
कोई भी नहीं गुजरती है...
राजमार्गों के नज़दीक से....!
उनका प्रेम...
कच्ची और टेढ़ी मेढ़ी...
पगडंडियों से ही रहा है सदा..!
प्यासे सपनों की खेती..
दिल के बंजर टुकड़े पर नहीं होती,
उसके लिए मन का...
गीला होना ज़रूरी होता है...!
तो चलो उस रास्ते पर...
जो किसी भी हद तक न पहुँचे...
क्यूँ कि मन का कोई छोर नहीं होता...!
***पूनम***
आप से अब कोई गिला भी नहीं
और कोई हमें मिला भी नहीं..!
देर तक जागती रही ऑंखें
ख्वाब का कोई सिलसिला भी नहीं..!
हमने बदली हैं इस तरह राहें
साथ में कोई काफिला भी नहीं..!
इस तरह उसने फेर ली नज़रें
दिल जो मुरझाया फिर खिला भी नहीँ..!
हमसे मिलने की भी नहीं फुर्सत...
आप इतने तो मुब्तिला भी नहीं..!
याद करना पड़ेगा 'पूनम' को...
आपसे अब मुकाबिला भी नहीं..!
***पूनम***
होठों को भींच लेने से क्या होगा...
तुम्हारा नाम जो
मुसलसल दिल ही दिल में...
लिया जा रहा है...
उसे कैसे बंद करे कोई...!
क्या मिट सकेगी तुम्हारी पहचान मिटाने से...
वो ढुलके हुए आँसुओं के नमकीन निशान...
गालों पर सूख तो गए
लेकिन आज भी नज़र आते हैं...!
वो तपते लबों की आंच....
वो बाँहों की पकड़...
नील भले ही न नज़र आये तन पर....
लेकिन वो एहसास आज भी है...
जो तुम इन सबके साथ
छोड़ गए हो मेरे पास... !
रूह को किसने देखा है...
प्यार के लिए
ये जनम ही काफी है...!
है न....!!
***पूनम***
23 जनवरी, 2016