मेरे बालों में मेरे उँगलियाँ घुमाते हुए...
तुम ने ठीक कहा था उस दिन---
प्यार चाँद सा होता है !
और मैं मान गयी थी सहजता से...!
उसके मायने नहीं समझ पाई थी उस दिन....!
चाँद में प्यार की चमक के अलावा
कुछ देख ही न पाई थी तब...
शायद वो उम्र ही नहीं थी जोड़-घटाव की...!
आज और अब..
कुछ कुछ समझ आने लगा है
तुम्हारी बातों का मतलब...
और उनका भाव भी...!
मुझ जैसी नासमझ को भी
आख़िरकार समझदार बना ही दिया तुमने...!!
तुम्हारी ही बातों की
न जाने कितनी गांठें खुलने लगी हैं अब...
अब जाना है सही अर्थ चाँद का...!
प्यार के सन्दर्भ में चाँद...
जब भी बढ़ता है तो
पूर्णिमा सा उजागर होता है...
और जो घटने पे आ जाये तो....
अमावस से भी ज्यादा अँधेरा....!