ज़िंदगी रोज़ ही
हमें कुछ न कुछ
सिखाती जाती है...
ज़रुरत है हमें
बाहरी आँखों के साथ
भीतर की आँखों को भी
खुला रखने की !
बाहर के साथ-साथ
भीतर भी कुछ घटता है
और भीतर का घटना
खुली आँखों से
नहीं दिखाई देता है....!!
हम चाहते हैं कि
बदलाव दिखाई दे बाहर,
कुछ वैसा ही
जैसा की भीतर हो रहा है
लेकिन....कोई है....
जो महसूस कर रहा है
यह बदलाव,
और चाह के भी
दिखा नहीं पा रहा है !
क्योंकि यह घटना
घटती है कहीं अन्दर.....
जहाँ पहुँच पाना आसान नहीं
किसी के लिए भी,
और कभी-कभी
स्वयं के लिए भी.....!!