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बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

वफ़ा तुम कर नहीं सकते.....





खुशी की बात करते हो मगर खुश हो नहीं सकते...
हमें अपना नहीं कहते...हमारे हो नहीं सकते...!!

जो रातों की सियाही को उजाला कर नहीं पाए...
सुबह हमने दिखाई...तुम उजाला कर नहीं सकते...!!

हजारों ख्वाहिशे दिल की तुम्हारे चार सू फैलीं...
हमारी बंदगी पर...अब इशारा कर नहीं सकते...!!

कभी मांगी थी बस मैंने तेरे दिल की नियामत ही...
हुई अब देर काफी...तुम शिकायत कर नहीं सकते...!!

तेरी फितरत में है बस घूमना औ घूमते रहना...
किसी इक शख्स की जानिब...वफ़ा तुम कर नहीं सकते..!!

खुदा गर है कहीं तो राह मुझको मिल ही जायेगी...
हमारी ज़िंदगी को...हम भी जाया कर नहीं सकते...!!




5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... ज़िंदगी को ज़ाया करना भी नहीं चाहिए ।

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  2. खुशी की बात करते हो मगर खुश हो नहीं सकते...
    हमें अपना नहीं कहते...हमारे हो नहीं सकते...!!

    खुबसूरत ग़ज़ल |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

    जवाब देंहटाएं
  3. वफ़ा करना हमारी आदत हैं...तुम चाहे कुछ भी समझो....उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. खुदा गर है कहीं तो राह मुझको मिल ही जायेगी...
    हमारी ज़िंदगी को...हम भी जाया कर नहीं सकते...!!-------

    जीवन को प्रेम के रंगों डुबोती और समझाती रचना
    कि जीवन क्या है ,प्रेम क्या है-----

    बहुत सुंदर रचना
    सादर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
    http://jyoti-khare.blogspot.in


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