बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

अजीब रिश्ता..............




बड़ा अजीब रिश्ता है हमारा भी
तुम चाहते हो करीब आना 
अपने तरीके से...
कुछ सुनना,कुछ सुनाना
लेकिन अपने तरीके से....
प्यार देना और लेना
वह भी अपने तरीके से.....
चाहते हो कि तुम्हारे बारे में 
जानूं मैं वो सब कुछ
जो तुम महसूस करते हो,
अपनी संवेदनाओं,
अपनी अनुभूतियों को
बांटना चाहते हो लेकिन....
सब-कुछ अपने तरीके से,
चाहते हो तुम्हारे मन में 
क्या चल रहा है
मैं खुद ही जान जाऊं,
खुद ही समझ जाऊं...
लेकिन इन सब में 
मैं कहाँ हूँ....???
शायद तुमने...
यह जानने और समझने की 
न कभी कोशिश ही की
और न ज़रुरत ही समझी,
तुमने चाहा मुझे हमेशा 
अपने  शब्दों में बांधना
और मेरे ज़ज्बातों,
मेरे एहसासों को भी शब्द देना
लेकिन प्रेम कभी शब्द में बंधा है क्या...??
तुम मुझे मेरे शब्दों में ही खोजते रह गए..
और खुद को शब्दों में समझाते चले गए !
लेकिन....
अपने लिए मेरी आँखों में
प्यार न पढ़ पाए तुम...
बिन बात ही लुढ़क आये 
मेरे गालों पर आंसुओं में 
खुद को न डुबा पाए तुम....
जहाँ सिर्फ तुम थे......
सिर्फ तुम........!!

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

ज़रा तुम साथ चलो.............




                                   
                                    फूल ही फूल से खिल जाएँ जो तुम हंस दो ज़रा
                                   मंजिलें पास में आ जाएँ....ज़रा तुम साथ चलो !

                                   जाने क्या खो गया है.......आज इस तन्हाई  में'
                                   वो भी हो जाएगा हासिल.....जरा तुम साथ चलो !

                                   ये खिला चाँद.......ये हवाएं........शबनमी रातें
                                   सभी हो जाएँ मेहरबाँ.......जरा तुम साथ चलो !

                                   वैसे मैं खुश ही हूँ........तू साथ रहे......या न रहे
                                   होगी कुछ बात अलग सी....ज़रा तुम साथ चलो !

                                   जो दिया तूने......उसे रखा है.......सिर  माथे  पे
                                   कभी तू भी तो ले इलज़ाम....जरा तुम साथ चलो !

                                   मेरे  ज़नाज़े में हो जायेंगे....यूँ  तो  सभी शामिल
                                  मगर होगा नया अंदाज़......जरा तुम साथ चलो !

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

ख्वाहिश..........





    

     दूर रह के भी वो हसरत से हमें देखते हैं
    पास से देखने को भी वो गुनाह कहते हैं..!

                                   हम खुद भी रहें परदे में....तो क्या होता है
                                   देखने वाले....क़यामत की नज़र रखते हैं..!

     दिल में होगी जो मुहब्बत.....वो हमें ढूँढेंगे
     उनके एतबार का हम भी तो भरम रखते हैं..!

                                   कभी मिल जाएँ वो हमें यूँ ही....राहों में कभी 
                                   उनकी राहों पर यूँ हम भी तो नज़र रखते हैं..!

     चाहते हम भी है...वो हमसे मिले...खूब मिले
     ख्वाहिशों पर मेरी वो भी तो नज़र रखते हैं..!


शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

Unconditional Love..............








बड़ा ही विस्तृत विषय है ये प्यार !!!
न जाने कितने लोग लिख गए हैं... 
न जाने कितने लोग लिख रहे हैं... 
न जाने कितने और लोग लिखेंगे...
इस 'भावना' पर....!!
एक अथाह...अनन्त....सरल...
और उतना ही दुरूह....!
लेकिन प्यार की सुन्दरता....
किसी भी तरह 
बखानी ही नहीं जा सकती.
कितना भी कोई कह दे.... 
कम ही लगता है.....
हर किसी को अपना प्यार 
दूसरे से ज्यादा गहरा लगता है !
और खूबसूरत भी.....
क्यूँ न हो....!
प्यार है ही ऐसा....!!
लेकिन मुसीबत आ खड़ी होती है
जब लोग आपस में ही 
प्यार की गहराई नापने लगते हैं..
अपनी छोड़ कर...
दूसरे की समर्पण की भावना 
ताकने लगते हैं....!
क्यूँ भाई तुम कितने समर्पित हो 
अपने प्यार के प्रति...??
अगर आपस में प्यार है तो...
'समर्पण' के बिना हो ही नहीं सकता....!
और ऐसी बातें भी 
तभी उठती हैं जब देखने वाला 
'समर्पण' के लिए केवल 
सामने वाले की तरफ देखते रहता है...!
खुद भी समर्पित होना है प्यार में 
स्वयं ही भूल जाता है.....!!
प्यार कभी भी एकतरफा नहीं होता....!
चाहे वो राधा-श्याम का हो,
सीता-राम का हो,
या मीरा-श्याम का...!
उदाहरण के लिए बातें 
हम इन्हीं लोगों की करते हैं..
लेकिन इन चरित्रों से जुडी
प्यार की भावना को नहीं देख पाते हैं !
प्यार में कोई कुछ पा के खोता है 
तो कोई कुछ खो के पा जाता है....!!
किसने क्या पाया और किसने क्या खोया..
ये खोने और पाने वाला ही जानता है...!
समर्पण भी तभी सार्थक है 
जब सामने वाला उसके काबिल हो....
वर्ना कुपात्र को किया गया 
समर्पण भी व्यर्थ ही जाता है.....!
एकतरफा प्यार भी....
ज्यादा दिन चलता नहीं है.....!
प्यार में न हो ईमानदारी दोनों तरफ 
तो प्यार भी फलता नहीं है....!!
प्यार करने की बातें 
कोई कितनी भी करे...
लेकिन प्रेम में सच्ची साझेदारी....
शायद ही कोई करे...!
कुछ न कुछ छुपाव-दुराव 
खुद रखते हैं बीच में 
और फिर वही लोग 
बातें भी करते हैं.....
"unconditional love "
और प्यार में "समर्पण" की !
कभी खुद के दिल में भी झांकें....
थोड़ा खुद को भी टटोलें..
क्या कभी खुद को भी 
दूसरे के प्रति समर्पित किया है 
पूरी ईमानदारी के साथ उन्होंने.....???




मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

प्यार की खुली किताब...........





आज खुले पन्नों की तरह 
प्यार हम सबके सामने है...
ज़िन्दगी की किताब पर 
इसकी एक एक इबारत 
अब साफ़ साफ़ ..
दिखाई देने लगी हैं....!
सबकी अलग अलग 
मन:स्थिति के हिसाब से 
प्यार भी अपने अनेकों रूप में 
सामने आ रहा है हमारे ....!
ऐसा नहीं कि प्यार की 
कहीं कोई कमी है !
बस जब दिखना चाहिए 
ये गुम हो जाता है कहीं !
जरा खुद के अन्दर झांकें हम सब......
प्यार तो है......
कहीं किसी कोने में दुबका हुआ....
गुमसुम सा.....
इसी इंतज़ार में कि....
कोई आ के छू ले हौले से...
तो बिखरती साँसों को समेट
ये फिर लड़खड़ाते हुए 
सीधे खड़ा हो जाए.... 
और गाने लगे........
"हमीं से मुहब्बत हमीं से लडाई...
अरे मार डाला दुहाई....दुहाई...."





पटना....
१४-०२-२०१२ 
(धन्यवाद...मुकेशजी )

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

.'बस यूँ ही'..............



गर पढ़ो तुम जो  तरन्नुम में.....ग़ज़ल होती है
इसमें कुछ बात मोहब्बत की....बयाँ होती है !
और अल्फाज़ भी होते हैं कभी....तल्खी लिए
चोट दिल पर करे कोई तो......अयाँ होती  है !

इसमें कुछ शख्स भी शामिल हैं यारों..'बस यूँ ही'
कोई  आशिक  तो  कोई  बज्मे रवाँ...'बस यूँ  ही' !
अश्क और इश्क से बरकत है बज़्म....'बस यूँ ही'
ये बज़्म मेरी दिल अज़ीज़ मुझको......'बस यूँ ही' !

मेरी महफ़िल है.....नज़्म मेरी......शम्मा,परवाने
न जाने क्यूँ.......तुझे न भाए......हम न ये जाने ?
तुझको आदत है भटकने की यूँ....महफ़िल-महफ़िल 
शमाँ जली मेरी......क्यूँ उस पर नज़र......परवाने ?  

खुदा के नूर से....रौशन है आज....बज़्म मेरी
सभी का करती...एहतिराम है ये....बज़्म मेरी !
है एतबार...इंतज़ार....इन्तिखाब......'उसका'
उसके आफ़ताब से....पुरनूर है ये....बज़्म मेरी !

न इसमें गम है.....न एहसास बदगुमानी का
न बददुआ ही......न एहसास है तकब्बुर  का !
रहे पुरनूर ये महफ़िल......खुदा की नेमत है
भरोसा मुझको है ....मेरे खुदा की बरकत का..!

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"प्यार को प्यार ही रहने दो.... कोई नाम न दो.............."


विद्याजी....
आपकी नज़र चंद पंक्तियाँ......
आपके प्रत्तुतर में लिखते-लिखते कुछ इतना लिख गयी तो सोचा कि पोस्ट में ही लगा दूँ....
आपने लिखा है....
"प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो.....
मगर रिश्ता मुकम्मल तभी होता है न जब इसको कोई नाम मिले....."




कुछ रिश्ते मुकम्मल हुए बिना भी 
ताउम्र साथ रहते हैं..
बस....
नाम नहीं दे पाते हम उन्हें...! 
या फिर हम खुद ही  
नाम देने से कतराते भी हैं....!!
और फिर प्यार को...
कोई नाम दिया जाए...
ये ज़रूरी तो नहीं... !
आज के इस दौर में 
कौन फ़िक्र करता है 
रिश्तों को मुकम्मल करने में !
या फिर उन्हें 
कोई नाम देने में...!
जब बिना नाम दिए ही 
सारे रिश्ते निभा दिए जाएँ...
दूर रह कर भी 
सारे एहसास जी लिए जाएँ....
फिर रिश्तों की अहमियत 
केवल घर की चारदीवारी तक 
या फिर सामाजिक प्रतिष्ठा
बनाए रखने तक ही 
सीमित रह जाती है....!
प्यार जिया जाता है...
निभाया नहीं जाता........
जब हम रिश्तों में 
प्यार और respect खो देते हैं..
तो ऐसे रिश्तों को.....
बस निभाना होता है !
प्यार की पूर्ति कहीं....
और भी की जा सकती है !
क्यूंकि प्यार तो एक भावना है,
एक फीलिंग.......
और रिश्तों को निभाने के लिए 
इस फीलिंग की ज़रुरत 
'शायद 'बहुत ज्यादा नहीं पड़ती...!!
ऐसे में प्यार की भावना को 
इस सब अलग रखना ही 
बेहतर होगा......!!
वैसे भी आज कल तो 
बिखरा हुआ सा है....
प्यार हर जगह....
कभी कहीं.....
गुलाब के रूप में
तो कभी कहीं....
चोकलेट के रूप में....!
और इस भावना की 
कद्र करती हूँ मैं भी...!!
अब ये भी प्यार का
भावनात्मक एक रूप ही तो है.....
आप क्या कहेंगे इसे......??
क्या नाम देंगें इसे......???
इसलिए प्यार को 
रिश्तों से अलग रखिये...
लाल गुलाब पकडिये एक हाथ में..
और दूसरे हाथ से चोकलेट खाइए...!
रिश्तों को भी निभाइए 
(मगर प्यार से)...
और प्यार को भी 
अलग ही रखिये
(रिश्तों से) !!
और गाइए.........
"प्यार को प्यार ही रहने दो.......
कोई नाम न दो................."



बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

न जाने क्यूँ .............








लोग न जाने क्यूँ 
इतने रिश्ते लगाते हैं सबसे...
फिर शुरू हो जाता है
उन्हीं का हर रिश्ते के साथ  
काउंट-डाउन....
कोई न कोई जोड़-घटाव
और न जाने कितनी आलोचनाएँ....!
बेवज़ह....!!
लगे रहते हैं दूसरों के 
रिश्तों को नाम देने में
और अपने ही कुछ रिश्तों को 
नाम देने से कतराते हैं.........
न  जाने  क्यूँ .........??





शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

आजमाइश..................


आजमाइश पे भी अपनी, गौर   फरमाएं ज़रा,
दूसरों को आजमाने में भी जल जाते हैं हाथ !
                                           न करें फिकराकसी  यूँ  दूसरों के हाल पे,
                                           गौर करिए खुद पे भी,जब छोड़ देता है वो साथ ! 
आते जाते यूँ तो रहते है न जाने कितने शख्स,
है वही अपना  तेरा, जो जिंदगी भर देता है साथ !
                                            इस जहाँ में किसको हम अपना कहें और क्यूँ कहें?
                                            जब जरूरत आ पड़ी,  न था कोई भी मेरे साथ.....
हाथ छोड़ा उसने ये कह कर बड़े ही नाज़  से,
कौन हूँ मैं? और क्या हूँ? अपनी खुदगर्जी के साथ  !!


बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

बांसुरी का राग हूँ मैं........





अनछुए से शब्द मेरे
गीत तुम आवाज़ हूँ मैं,
तान हो तुम बांसुरी की
और उसका  राग  हूँ मैं....  

                     तेरी साँसों सी सुगन्धित
                     तेरी अलकों से सुशोभित, 
                     तेरी पलकों में बसी मैं
                     एक मादक रात हूँ मैं....

तुम मेरे मन में हो प्रियतम
तुमको ही देखूं मैं निसदिन,
हाथ में जब   हाथ तेरा
हर समय मधुमास हूँ मैं....

                      हो भले जीवन ये कंटक
                      चाह तेरी है ये जब तक,
                      भूल कर दुनिया ये सारी
                      एक   तेरे   साथ   हूँ   मैं....