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शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

समर्पण....




समर्पण....

मेरी पूजा, मेरा अर्चन
सब कुछ तेरा, तुझको अर्पण !
ये मन तेरा ही मंदिर है
इसमें तेरी ही मूरत है !
मेरी साँसें, मेरा जीवन
मेरे पतझड़, मेरे उपवन !
जो है..तूने ही दिया मुझको
सर्वस्व समर्पित है तुझको !
कुछ पुष्प भावनाओं के हैं
कुछ अश्रु संवेदनाओं के हैं !
हैं अक्षत, दीप यही मेरे
रोली, चन्दन हैं धूप मेरे !
आँचल में तेरा प्यार लिए
मानो सारा संसार लिए !
तेरी देहरी, तेरा द्वारा
सर्वस्व मेरा, संबल सारा !
क्या देगा ये संसार मुझे..
तूने जो दी मुस्कान मुझे !
मेरे ईश्वर, आराध्य मेरे !
मेरे प्रेमी, सर्वस्व मेरे !
ये सब तूने ही दिया मुझको
सम्पूर्ण समर्पित हूँ तुझको...!!


14 टिप्‍पणियां:

  1. समर्पण और निश्चिन्तता..सुन्दर रचना।

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  2. बहुत खूब.
    पूर्ण समर्पण ही प्रेम की पराकाष्ठा है.
    और ईश्वर के आगे पूर्ण समर्पण,
    भक्ति की पराकाष्ठा है.

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  3. सर्वस्व समर्पण के भाव ही तो उसे प्रिय हैं।

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  4. वाह पूनम जी..........एक ही शीर्षक से दो भिन्न अभिव्यक्ति ....एक सांसारिक प्रेम की और एक आध्यात्मिक प्रेम की.............हैट्स ऑफ दोनों के लिए |

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  5. समर्पण के भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  6. प्रेम और समर्पण की ऊँचाइयों को छूती लाजवाब रचना ...

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  7. bahut achche bhav hai samrpan ke...
    sundar rachna..
    jai hind jai bharat

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  8. क्या देगा ये संसार मुझे
    तूने जो दी मुस्कान मुझे ...
    ....
    सम्पूर्ण समर्पित हूँ तुझको..

    मुझे भी आशीर्वाद दो ना ऐसा ही समर्पण जन्म ले ले पूनम जी सब मित्थ्या है ना बाकी तो मगर हम फिर भी मानते कहाँ हैं ...
    आपको प्रणाम पूनम जी !

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  9. मन , दिल को छू लेने वाली रचना जैसे कि मेरी अपनी कहानी हो
    भावनाओं सहज चित्रण

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