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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नई सुबह.....






कृष्णा के साथ...
एक नयी सुबह...
१-१-२०१२

इस साल की पहली सुबह पैगाम लेकर आयी है !
हालात जो  बे-मेल से थे,  छोड़ पीछे   आयी   है !!

अच्छा हुआ जो आप मिल बैठे हैं मुझसे राह में !
मतलब के थे जो रिश्ते-नाते छोड़ पीछे आयी है !!

इस साल में सब खुश रहें,फूलें,फलें,गम भूल कर !
दुश्मन हों हमसे  दूर, और  हो दूर जो सौदाई   है !!

हमने तुझे माना है जबसे फूल खिलते चारों सू !
बिखरे हुए हैं रंग जैसे आज होली आयी है !!


आओ लगा ले इस सुबह को हम गले से बार बार !
ऐसी सुबह से ही तो यारों हमने ज़न्नत पाई  है !! 

जो था गया पिछले बरस अच्छा-बुरा जैसा भी था !
सब  भूल  जाएँ !  यह सुबह सन्देश ऐसा लाई   है.....!!


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

तकिया........




 

३०-९-२००६



तुमने कहा था एक बार
जब कुछ समझ न आये तो
मेरी तरह तकिया लो

और सो जाओ......!
सच में.....
तुम सो सकते हो,
और सोये भी हो
कितनी ही बार
और अभी भी !
पर मैं--
ऐसे में तकिया ले कर भी
नहीं सो पायी हूँ,
हमेशा उसी तकिये के सहारे
कितनी ही रातें
जाग कर काटी हैं मैंने !
अभी तक कितने ही तकिये
गीले किये हैं मैंने....
लेकिन आंसू अभी भी
थम नहीं पाए हैं !
चाह कर भी मैं
तुम्हारी तरह नहीं हो पा रही हूँ
तकिया तो साथ में है
पर सो नहीं पा रही हूँ....!!

 

रविवार, 25 दिसंबर 2011

कुहासा.....




खतौली,देहरादून...
२९-१०-२००७

लम्बे-लम्बे बांसों के झुरमुट में,बड़े-बड़े दरख्तों के बीच, ऊँची ऊँची इमारतों और मकानों के बीच में जैसे कुहासा अपनी जगह खोज लेता है, हर छोटे बड़े space को भर देता है......मन की शान्ति भी कुछ उसी तरह एक बार space बनाने लगे तो हर जगह, किसी भी रिश्ते में, किसी भी स्पर्श में, किसी भी emotion में पैर पसारती चली जाती है. ऊपर से आप भले ही हिले हुए दिखते हैं लेकिन भीतर ही भीतर कुछ पसरता सा जाता है कुहासे की तरह....शान्ति.....शान्ति.....शान्ति....!!!


बुधवार, 21 दिसंबर 2011

रिश्ते...और हम...





मेरी डायरी से ...
बरौनी रिफायनरी
२३-९-२००६


हर रिश्ता ...
बड़े प्यार से,
बड़े लगन से
काफी समय में
बन पाता है
और कभी कभी
instant भी बन जाता है.
फिर भी...
हम उसे संजो कर
नहीं रख पाते हैं !
बनाने के समय
हम कितनी मेहनत 
और कितना प्यार
देते हैं उसे,
लेकिन...
जब बन जाता है
तब casual हो जाते हैं,
taken for granted लेने लगते हैं !
धीरे-धीरे एक-दूसरे की
छोटी-छोटी गलतियों को भी
बड़ा करके देखने लगते हैं,
अपने शब्दों के लिए भी
careful नहीं रह पाते हम !
फिर..
एक समय आता है जब...
वही रिश्ता
जिसे हमने
बड़े प्यार से बनाया था
बोझ लगने लगता है,
क्योंकि...
हमने खुद उसे
अपनी ही बातों से
बोझिल बना दिया होता है...!!




गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

तुम्हारे लिए.....



मेरी डायरी से..
२१-९-२००६
बरौनी रिफायनरी



आज मैं खुश हूँ....
शायद  हाँ !
शायद नहीं !
हाँ,इसलिए कि
मैं आज महसूस कर रही हूँ
कि मुझमें हिम्मत है..
कुछ सोचने की..!!
तुमसे अलग,
तुम्हारे बिना...
तुमसे दूर भी रह सकती हूँ !
और नहीं भी....
क्यूँकि अभी भी तुम मेरे साथ हो
मेरे पास,
मेरे भीतर ही,
चाह कर भी तुम्हें
अपने से दूर नहीं कर पा रही हूँ..
सोचती हूँ बार-बार
कोशिश भी करती हूँ हर बार
कि तुम्हें भुला दूं..
लेकिन मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ
हो भी नहीं सकती,
तुम केवल अपने में जीते हो
और मैं तुम्हारे साथ ही !
मेरे मन का हर कोना
तुम्हारे एहसास से गीला है
और अगर उसे किसी ने सुखाया है
तो वो भी तुम ही हो ! 
हर स्थिति,
हर परिस्थिति में
तुम मेरे साथ ही हो
मैं चाहूँ भी तो
कैसे दूर जाऊं तुमसे ! 
बताओ.....?????

रविवार, 27 नवंबर 2011

रिश्ते.....पास भी...दूर भी !!

कल अपनी एक डायरी उठाई काफी देर तक उसे पढ़ती रही..अपना ही लिखा हुआ अनजाना सा लगा...लगा ही नहीं कि मेरा ही लिखा हुआ है.कई बार हम खुद तो कुछ नहीं चाहते लेकिन साथ वाले की मन:स्थिति हमें कुछ सिखा देती है...बता देती हैं और हम अनजाने ही सब सीखते जाते हैं,समझते जाते हैं...ईश्वर की कृपा बनी रहे तो अपरोक्ष ही सीखना बेहतर होता है. .वर्ना हाथ तो हमारे भी जलते-झुलसते हैं....
और ये जलन बर्दाश्त के बाहर होती है !
                   जिस समय लिखा था उस समय के हालात और थे और आज के हालात कुछ वैसे ही हैं. हाँ !! एक बात ज़रूर हुई  इस बीच...मैंने खुद को पा लिया...आज भी सब कुछ पूर्ववत ही है !!   ये दुनिया अपने हिसाब से चल रही है !! रिश्ते-नाते, अपने-पराये (कुछ नए नाम जुड़े,कुछ पुराने,डिलीट तो नहीं कहूंगी,हाँ होल्ड पर जरूर हैं)और जीवन से वास्तविक परिचय धीरे-धीरे होता चला गया इसी बीच....!!!
        २००६ से २०११ का समय बीत गया....एक लम्बा अरसा जो मैंने अकेले जिया..किसी को इसका क्रेडिट नहीं दूंगी क्योंकि इस समय कोई मेरे साथ था ही नहीं....सिवाय मेरे,मेरे और मेरे.....!!
          अभी से कुछ संस्मरण (एहसास भी कह सकती हूँ पर नहीं  कहूँगी क्यूंकि  एहसास बोल  कर दुबारा कष्ट नहीं देना चाहती खुद को और न ही दुबारा जीना चाहती हूँ वो सब) मेरी डायरी के रहेंगे वर्ना सब मेरे साथ ही रह जायेंगे ऐसे ही लिखे हुए.....शायद इससे हम (मैं आप की बात नहीं कर रही हूँ ) आपसी संबंधों,रिश्तों,परिस्थितियों और अपनी ही भावनाओं-अनुभूतियों को समझ सकें....! अपना ही लिखा हुआ हर बार ही खुद को कुछ नया एहसास करा जाता है !
          कृपया, अगर आपसे विचार मेल खातें हों या न खाते हों तो अन्यथा न लें ! बस, और रचनाओं की तरह इन्हें भी सहजता से ही लें......!!
शुक्रिया......!!


३०-१०-२००६
रिश्ते.....पास भी...दूर भी !!




कुछ बने-बनाए
कुछ खुद से बनाए
ये रिश्ते !
कुछ चाहे
कुछ अनचाहे
ये रिश्ते !
क्यूँ उलझता है
इंसान इसमें ?
किसलिए ?
सहारा,प्यार,अपनापन !
क्या खोजता है इनमें ?
जो बने-बनाए रिश्ते-
उनमें अब रस नहीं...!
जो खुद से बनाए रिश्ते-
उनमें बंधन नहीं..!
कुछ चाहे रिश्ते...
जिनमें प्यार नहीं...!
कुछ अनचाहे रिश्ते...
जिनमें अपनापन नहीं...!
इंसान इनमें बंधना
और आज़ाद रहना
दोनों ही चाहता है साथ-साथ !!
फिर कुछ ऐसे रिश्ते भी हैं
जिनमें एकाएक कुछ दीखता है..
प्यार,अपनापन,सहारा,एहसास !
जो इंसान अपने चारों तरफ
बेसब्र हो कर खोजता रहता है
(अपनी अपूर्णता जो उसकी खुद की है)
लेकिन कहने को...
हर रिश्ते की अपूर्णता
उस रिश्ते में
पूर्ण होती सी दिखाई देती है !
बाकी सारे रिश्ते
गांठों की तरह
ढीले होते से लगते है,
मन बेचैन,
शरीर थका सा !!
अब क्यूँ..??
फिर भी जीवन में
कहीं कुछ अपूर्ण है
जिसकी खोज में भटक रहा है वो !
जो है...उसमें भी
आनंद नहीं ले पा रहा है
और जिस आनंद की खोज में है
वो मिले कैसे...???
यह वह समझ नहीं पा रहा है !
तो फिर क्या करे..?
क्या इन रिश्तों में है वो आनंद !
जिन्हें वो खोज रहा है...!!
या फिर उसकी खोज में
रोज़-रोज़ नए रिश्ते बनाते जाये..!!!
हर रिश्ता एक बंधन देता है
कुछ चाहता है,कुछ मांगता है
स्थूल और सूक्ष्म तरीके से !!
उसकी पूर्ति हम कैसे करते हैं ?
यह हर व्यक्ति और
परिस्थिति पर निर्भर करता है.....!!!
फैसला आपके हाथ.........



बुधवार, 23 नवंबर 2011

फितरत...





आइना साथ लिए फिरते हैं जो गैरों को दिखाने के लिए !
अपने   ही  अक्स पे   कभी  खुद  गौर  किया   होता !!

हर समय देखते रहते है फितरत  औरों की जो !
अपनी *फ़ित्न:अंगेज़ी पे भी कभी गौर किया होता !!
(*भड़काना या षड्यंत्र करना)  

दुहाई  देते  हैं जो हर वक़्त *तर्बियत की हमको !
अपने  भी  तर्बियत पे कभी गौर किया होता !!
 (*संस्कार-बात करने का तरीका,)

*फ़िक्र:बाज़ी में लगती है जब तबियत किसी की यारों !
**फिक्रे उक्व़ा,***फिक्रे फ़र्दा उसे जनाब कहाँ है होता !!
(*फ़िकरे कसना,व्यंग्य करना,**परलोक की चिंता,
 ***कल की चिंता)




रविवार, 20 नवंबर 2011

तलाश.......




हर इंसान की जिन्दगी कुछ तलाशने में ही गुज़र जाती है....वह तलाश कुछ भी,किसी भी चीज़ की हो सकती है....शारीरिक ज़रूरतों की,सांसारिक सुख-सुविधाओं की.मानसिक सुख की,ख़ुशी की,emotional support की, perfect relations की,एक perfect soulmate की, आधात्मिक सुख की, भगवान् की....और भी न जाने क्या-क्या...???
       पूरी जिन्दगी सिलसिला चलता रहता है इसी तलाश का....कभी कुछ मिलता है तो कभी कुछ छुट जाता है !! निदा फ़ाजली जी का एक शेर है..."कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.."और हर इंसान इसी "मुकम्मल" लफ्ज़ को जिन्दगी मुकम्मल करने के लिए हर जगह,हर इंसान और हर रिश्ते में कुछ तलाशता रहता है....फिर भी कहीं कुछ मिलता है तो कहीं कुछ....और तलाश चलती रहती है !!
            इंसान ही क्यों....इस दुनिया में जो भी आया है....वह चाहे किसी भी रूप में हो,उसका जाना निश्चित है...फिर चाहे शमा हो या परवाना,आग हो या पानी,पत्थर हो या मोम,साधु हो या शैतान,भगवान् हो या इंसान या फिर और भी किसी रूप में इस धरती पर शरीर धारण करके आया हो !! परन्तु जाते-जाते कितना तृप्त और कितना अतृप्त होगा ???...शायद वह खुद नहीं जानता....!!और उस तृप्तता को पाने के लिए हर जगह,हर इंसान,हर रिश्ते में कुछ तलाशता रहता है....शमा को परवाने की तलाश है तो परवाने को शमा की,आग को लहकने के लिए हवा की तलाश है तो पानी को तलाश है किसी नदी या समंदर की,पत्थर को तलाश है  कि कोई उसे मूर्ति में ढाले और मोम को तलाश है एक सांचे की जिसमें ढल कर वह शमा की तरह जल उठे,साधु को भगवान् की तलाश है तो शैतान को भगवान् और इंसान दोनों की,भगवान् को भी तलाश है भक्त की और एक इंसान क्या तलाश रहा है...यह वह ज़िंदगी भर नहीं जान पाता...!! कभी लगता है कि सब मिल गया,कभी लगता है कि कहीं कुछ है जो मिलना बाकी है...और इस तरह तलाश जारी रहती है क्योंकि इसका दायरा इतना बड़ा है कि गिनाना मुश्किल है.....शारीरिक सुख हैं तो मानसिक नहीं,सांसारिक सुख है तो आध्यात्मिक नहीं.....!! आध्यात्मिकता की भी अपनी अलग ही तलाश है....और यह तलाश जारी रहती है मृत्यु पर्यंत... और उसके बाद भी.....फिर एक नई जिन्दगी और फिर वही तलाश !!!

लेकिन कब तक.......???

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

ज़िंदगी..............






न ठहरी है.........न  ठहरेगी.......ज़िंदगी वो रवानी है !
जो जी लो तुम इसे सब-कुछ है.....वर्ना बहता पानी है !!


बहुत आये-गए उलमा.......बादशाह, पीर औ काजी !
सभी की ज़िंदगी पानी पे लिखी........इक कहानी है !!


किसी ने अपनी कूबत से.....बना डाला इसे बदतर !
किसी की ज़िंदगी जैसे.......समुन्दर की जवानी है !!


समझते वो हैं के मारा......उन्होंने तीर बेहतर है !
परिंदे उड़ गए कब के......कहीं न अब निशानी है...!!

हर इक रिश्ता यहाँ उनका सियासत की तरह लेकिन 
न हम आ पाए उनकी बात में....अल्हड़ जवानी है...!!





सोमवार, 7 नवंबर 2011

दोहे पूनम के...................




दुनिया ऐसी बावरी,
                               सीख  देय  सब कोय !
वही सीख खुद गुन रहे,
                               सीख सीख तब होय !!


*************************************


तेरे मन में क्या छिपा ,
                                  तू जाने, तू सोच !
मेरा मन  खाली  भया,
                                अब न रहा संकोच !!


*************************************


जिव्हा तू बडभागिनी,
                                   बड़े बड़ों को मारे !
तुझसे ही तो सब डरें,
                                   तू न सोच बिचारे !!


*************************************


अपना कहा बिसरा दिया,
                                     दूजे  का किया याद !
अपना कहा जो बिचारे,
                                     कबहूँ न रहे बिसाद !!


*************************************


भूत भविष्य सब सीख है,
                                          जो दूजे को देय !
अपने पर जब आत है,
                                        दोनों एक ही होय !!


***********************************


मानुस बिचारा बावरा,
                                     दूजे की सोच बिचारे !
अपने मन की न दिखे,
                                     दूजे अवगुण ही निहारे !!


************************************


प्यारे से ही प्यार है,
                                  और प्यार संसार !
खुद से भी कर लीजिये,
                                      बस  थोड़ा सा प्यार !!



गुरुवार, 3 नवंबर 2011

एक दीवाली ऐसी भी....



लगा के आग घर को रौशन करें मोहल्ले को !
इस   बार  ऐसे  कुछ   दीवाली   मनाई   जाये !!

जुबान चलाओ कुछ ऐसे के तेज़ धार हो इसकी !
बिना तलवार औ खंजर के क़त्ल-ए-आम हो जाये !! 

तुम अपने दिल की सुनो हम करें फिकर अपनी !
छुपी  है  बात  जो  अब  तलक   वो  आम  हो  जाये !!



बुधवार, 2 नवंबर 2011

मन......

मन......
न जाने कितनी बार हुआ
टुकड़े-टुकड़े !
इतना कि.....
कागज़ की मानिंद
बिखर गया हवा में !
कोई ज़ज्बात,कोई एहसास  
इससे अछूता न रह पाया ! 
कभी अपनों ने ही तोड़ा-मरोड़ा,
कभी खुद हमने इसे सताया !
कितनी बार ही इसे  
हमने बहलाया-फुसलाया,
लेकिन ये न माना..!!
फिर अचानक एक दिन  
ये खुद ही...
आ गया मेरे पास
थका हारा,बेहद उदास !
अपनों ने ही न था बक्शा उसे,  
जाने कितने आरोपों और तानों से  
नवाज़ा था उसे,
बार-बार अपने पास बुला कर  
फिर ठुकराया था उसे...!
मैंने बड़े प्यार से
उसके सिर पर हाथ फेरा,
उसे सहेजा-समेटा
और एकाएक.....
सारे के सारे टुकड़े
जोड़ डाले हमने 
साथ मिल कर..!!
अचानक देखा कि...
उस पर उभरने लगीं हैं  
चंद शक्लें....
जानी-पहचानी सी,
और कुछ शब्द भी
अनजाने-पहचाने से..,
कुछ सीधे-साधे
कुछ टेढ़े-मेढ़े से,
साथ ही कुछ एहसास भी
अपने-बेगाने से...
जो केवल उसके थे !!
और फिर कविता के      
छंद  की मानिंद
जुड़ गया ये मन,
मसरूफ हो गया
फिर से खुद को
समेटने सहेजने में..!!
जैसे अपने टूटे खिलौने को
एक बच्चा खुद जोड़ लेता है ,
और मशगूल हो कर
उसी से खेलने लग जाता है !
क्योंकि .....
इस बार अपने खिलौने का जन्मदाता  
वह स्वयं होता है....!!



शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

समर्पण....




समर्पण....

मेरी पूजा, मेरा अर्चन
सब कुछ तेरा, तुझको अर्पण !
ये मन तेरा ही मंदिर है
इसमें तेरी ही मूरत है !
मेरी साँसें, मेरा जीवन
मेरे पतझड़, मेरे उपवन !
जो है..तूने ही दिया मुझको
सर्वस्व समर्पित है तुझको !
कुछ पुष्प भावनाओं के हैं
कुछ अश्रु संवेदनाओं के हैं !
हैं अक्षत, दीप यही मेरे
रोली, चन्दन हैं धूप मेरे !
आँचल में तेरा प्यार लिए
मानो सारा संसार लिए !
तेरी देहरी, तेरा द्वारा
सर्वस्व मेरा, संबल सारा !
क्या देगा ये संसार मुझे..
तूने जो दी मुस्कान मुझे !
मेरे ईश्वर, आराध्य मेरे !
मेरे प्रेमी, सर्वस्व मेरे !
ये सब तूने ही दिया मुझको
सम्पूर्ण समर्पित हूँ तुझको...!!


सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

दीपावली की शुभ-कामनाएं.....

कुछ ऐसा महसूस किया अपने इर्द-गिर्द
कि ये टूटी-फूटी पंक्तियाँ लिखा गया कोई....
समाज के संस्कारों की दुहाई देने वाला जब
खुद ही उन को न माने तो, क्या करे कोई.....??


कामनाएं........


जो खुद को समझते हैं बुद्धिमान और ज्ञानी !
वो दूसरों को साधारण इंसान भी नहीं समझते हैं !!

उनके लिए अपनी बातें,अपने विचार ही सबसे ऊपर होते हैं !
वो आम इंसान के विचारों को क्षुद्र समझ कर हंसते हैं !!

क्या हुआ जो समाज और संसार उनके विचार से मेल नहीं खाता ?
वे खुद भी तो तमाम लोगों की सोचों से मेल नहीं खाते हैं !!

वो हंसते रहते हैं बस दूसरों की बातों पर !
लेकिन बर्दाश्त नहीं होता जब दूसरे उनपे हंसते हैं !!

कभी नज़र जो खुद पे डालें तो गज़ब हो जाए !
या खुदा! तेरा  करम कभी तो हम इंसानों पर भी हो जाये...!!

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.....



ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.....

खुदा की नेमतें हैं ये, इबादत की तरह लो तुम..
न रोको तुम इसे, ये जिन्दगी भरपूर जी लो तुम !

गयी गर जिन्दगी तो ये,  पलट कर फिर न आयेगी..
अभी जी लो,यहीं जी लो, इसे बाँहों में ले लो तुम !

तुम्हारी जिन्दगी मोहताज कब से हो गयी जानां..?
तुम्हारी थी तुम्हारी है, ये कब तुमने था पहचाना..??

न होना अब कभी नासाज़ अपनी रूह से जानां..!!
ज़रुरत जब लगे मेरी, हमारे पास आ जाना...!!

जलाएंगे शमा उम्मीद की मिल कर के हम दोनों..
जो  थे दुश्मन,रहें दुश्मन ! फिकर क्यूँ कर करें दोनों !!

हमारी जिन्दगी पर शौक से तोहमत लगा लें  वो !
खुदा बक्शे उन्हें किस्मत ! गिरेबाँ अपने झांकें वो !!




रविवार, 16 अक्तूबर 2011

कुछ एहसास हमारे....

इमरान साहेब और विशाल जी....
मेरे ब्लॉग पर नियमित आने का शुक्रिया !!
कुछ एक से हालत..ज़ज्बात....
आपको शुक्रिया कहने के लिए जो लिखना शुरू किया
तो कुछ इस तरह लिखा गया मुझसे...
ये मैंने नहीं लिखा बल्कि आपने लिखवाया है  
इसलिए ये रचना आप दोनों को समर्पित है.... 




कुछ एहसास हमारे....


पत्थरों के शहर में
उबड़-खाबड़ चट्टानों के बीच भी
कुछ एहसास बचा के रखे हैं हम सबने...!
कुछ अपने से,कुछ बेगाने से
कुछ अनमने से, कुछ पहचाने से,
सबसे छुपा के, कहीं भीतर सजा के,
दुश्मनों की नज़र से बचा के,
बददुआवों  पर पर्दा गिरा के.....
पंडितों और ज्ञानियों के ज्ञान से भी बचा के !!
कुछ सहमे, कुछ सकुचाए..
कुछ मासूम से, कुछ कुम्हलाए..
कुछ हरे-भरे, कुछ मुरझाये...
कुछ हँसते  हुए,कुछ शर्माए,
अपनी ही खुशबू से हमने जो महकाए..!
बाकी सब एहसासों पर
कब्ज़ा जमा कर बैठे हैं वो...(सब)
लेकिन इन पर केवल हमारा हक है...!!
ये एहसास हैं बस हमारे....
न तुम्हारे , न किसी और के !
बस, दूर ही रखो इनसे अपने आप को
वर्ना इन पर भी दिखावे के रंग चढ़ जायेगें,
ज्ञानी तो ये हो जायेंगे लेकिन
जिन्दगी जीना भूल जायेंगे...!
फिर अपनों में भी बैठ के
खोखली हँसी हँसना 
इन्हें आ जायेगा,
हर रिश्ते,हर  सम्बन्ध  के साथ  
जोड़-घटाना भी इन्हें आ जायेगा !
न जाने   कितने तानों  और उलाह्नाओं से
बचा के रखा है इन्हें हमने...!
ये केवल हमारी अमानत हैं
फिर क्यों इन पर नज़र गड़ा रखी है तुमने  !
अब छोड़ो भी ....
थोड़ा तुम भी आराम करो
और रहने दो चैन से हमें भी !
ये एहसास हैं केवल हमारे
तो तुम्हारे एहसास भी होंगे कुछ ऐसे ही.....!!



मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

उसने कहा था.....









उसने कहा था...
यह जिन्दगी एक रंगमंच है,
यहाँ हर इंसान,हर रिश्ता
हर अनुभूति और हर संवेदना
एक छलावा है,एक दिखावा है !
जीना है सुख से तो
बस,प्रैक्टिकल बन जाओ,
मेरे साथ रहती हो तो
सारे एहसासों को ताख पर रखो
अरे,कुछ तो मुझसे सीखो !
देखो,मैं कैसे हर सम्बन्ध
हर रिश्ते और एहसास से मुक्त हूँ !
मैं खुद नहीं फंसता हूँ,
बस अपना काम करता हूँ.
प्रैक्टिकल हूँ....
इसीलिए हर इमोशन से दूर रहता हूँ !!
तुम भी जिन्दगी के इस रंगमंच पर
जब नाटक करना सीख जाओगी
तो भावनाओं के इस कष्ट से
सहज ही मुक्ति पा जाओगी !
फिर जीना होगा कितना आसान
न कोई बंधन,न होगी तुम परेशान !!
और फिर उसी के साथ
मैंने भी उसी की तरह
जीना सीख लिया है !
एक तरह से....
कई एहसासों और ज़ज्बातों से
धीरे-धीरे किनारा कर लिया !! 
फिर भी.....
कहीं भीतर
कुछ ज़ज्बात,कुछ एहसास
अभी भी जिंदा हैं...
जो नितांत मेरी धरोहर हैं......!!


शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

अजीब संयोग.......




अजीब संयोग है....
हजारों साल बीत गए
राम और कृष्ण को हुए,
सीता और राधा को हुए...!
लेकिन हम जब भी
उदाहरण देते हैं आज भी
किसी नारी को 
पतिव्रता की तो
सीता से.....!
लेकिन प्रेम के लिए
राधा का उदाहरण देकर
मान्यता न दे पाए...!!
क्यों.....???
गर देखा जाए तो
सीता में प्रेम लुप्त है
और राधा में पतिव्रता...!
और पुरुष विवाह  होते ही
राधा सा प्रेम तो  
भूल जाता है लेकिन
पत्नी को सीता की
पतिव्रता ही समय-समय पर
याद दिलाता है....!!
लेकिन आज भी
हम पुरुषों को पत्निव्रता के लिए
राम का उदाहरण  न दे पाए !
आज भी अपने लिए
सीता सी पत्नी चाहने वाले
ज्यादातर पुरुष
अपने प्रेम  के लिए  
कृष्ण का ही
उदाहरण देते नज़र आते हैं ! 
क्योंकि वहां सुविधा है,
कोई बंधन  नहीं है...
न विवाह का, न रिश्ते का
न  परिवार का, न  समाज का !!
यहाँ एक  खुलापन है...
जो हर स्वभाव से,
हर परिवेश से,
हर परिस्थिति से
और हर व्यक्ति से
कहीं न कहीं 
मेल  खा ही जाता है !!
और हमारे समाज में
बेचारा राम...
अपना एक पत्नीव्रता का व्रत लिए
उदाहरण बनने से रह जाता है...!!  



शनिवार, 24 सितंबर 2011

शिक्षा.....








ज़िंदगी रोज़ ही
हमें कुछ न कुछ
सिखाती जाती है...
ज़रुरत है हमें
बाहरी आँखों के साथ
भीतर की आँखों को भी 
खुला रखने की !
बाहर के साथ-साथ 
भीतर भी कुछ घटता है 
और भीतर का घटना
खुली आँखों से
नहीं दिखाई देता है....!!
हम चाहते हैं कि
बदलाव दिखाई दे बाहर, 
कुछ वैसा ही
जैसा की भीतर हो रहा है
लेकिन....कोई है....
जो महसूस कर रहा है
यह बदलाव,
और चाह के भी
दिखा नहीं पा रहा है !
क्योंकि यह घटना 
घटती है कहीं अन्दर.....
जहाँ पहुँच पाना आसान नहीं
किसी के लिए भी,
और कभी-कभी
स्वयं के लिए भी.....!!


सोमवार, 19 सितंबर 2011

बुद्धि.......






ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट कृति
है ये इंसान...!
और उसके पास एक चीज़ है
बुद्धि.....!
जिसे इस्तेमाल करने की
पूरी-पूरी स्वतंत्रता दी है
ईश्वर ने इंसान को !!
इंसान सब काम करता है
इसी बुद्धि से !
जब कोई काम अच्छा हो जाता है
तो उसका श्रेय अपने सिर पर लेता है
और जब कोई काम
बिगड़ जाता है उससे तो.....
उसका दोष
वह ईश्वर के सिर पर मढ़ देता है !
इंसान सब छोड़ सकता है परन्तु
एक बुद्धि ही है....
जो वह किसी तरह भी
छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता !
जहाँ उसे बुद्धि लगानी होती है
वहां नहीं लगता.....
और जहाँ नहीं लगानी होती है
वहां बेवजह लगाता रहता है !!

शनिवार, 3 सितंबर 2011

अधूरी तस्वीर......




कोने में पड़ी वो तस्वीर
जो तुमने बनायी थी कभी..
कितनी अकेली है !  
क्योंकि वह अधूरी है......!!
और
यही वास्तविकता है तुम्हारी !
तुम उसे पूरा नहीं कर सकते !!
क्योंकि-
तुम्हें तो ख्वाबों में
रंग भरने की आदत है,
तुम अपने ख्वाबों को
पूरा करने के लिए
एहसासों में जीते हो,
सारा समय उन्हें ही 
पूरा करने में
लगे रहे हो अब तक !
शब्दों को जीते हो हकीकत में,
और ख्वाबों में-
भावनाओं,एहसासों में खो जाते हो !
इसीलिए ख्वाबों की दुनिया
हकीकत नहीं हो पाई
अब तक तुम्हारी !
उस अधूरी तस्वीर की तरह
तुम्हारी हकीकत
आज भी अधूरी है !!
क्योंकि हर बार
तुम आगे बढ़ जाते हो
अपने ख्वाबों की दुनिया में
एहसासों को जीने के लिए,
उन्हें पूरा करने के लिए !
और हर बार तुम्हारा
ध्यान हट जाता है
अपनी ही हकीकत से
अपनी उस अधूरी तस्वीर की  तरह
जिसे तुम अभी तक
पूरा नहीं कर पाए हो !
और  इसीलिए
तुम छटपटाते भी हो कि
तुम्हारी हकीकत
तुम्हारे ख्वाबों की
पूर्णता क्यों नहीं बन पाती ??
प्रश्न खुद से करो तो सही होगा....!!!


बुधवार, 24 अगस्त 2011

दिल.....











जो आँखों को दिखता हैं...
जो कानों को सुनायी देता है...
कभी-कभी झूठा होता है !
दिल क्या समझता है...
क्या महसूस करता है...
कोई नहीं कह सकता है !!



रविवार, 21 अगस्त 2011

मोहरे ........




कुछ लोग जिंदगी को शतरंज की तरह खेलते हैं
जीवन की हर परिस्थिति और घटना को,
यहाँ तक की अपनी भावनाओं और एहसासों को
और कभी भाग्य और भगवान् को भी  
गोटियों की जगह मनचाहे रूप से रखते हैं.
कभी-कभी.....
अपने रिश्तों और संबंधों को भी
कभी प्यादे तो कभी सैनिक         
और कभी घोड़े और वजीर बना डालते हैं,
लेकिन चालें राजा की तरह खुद  चलते हैं !!
सारा खेल उनका ...
सारी चालें उनकी सोची-समझी,
फिर अचानक क्या हो गया....??
गर सोची-समझी चालें  
उनके हिसाब से सही   बैठ पाईं तो....
तो दूसरा दोषी कौन और क्यों ??
सारे प्यादे,घोड़े,सैनिक   
सब के सब तो उसी के थे ....
उसी ने अपनी मनचाही जगह पर
फिट भी किये थे,
और तो और ...
पासा भी तो उसने अपने हिसाब से फेंका था,
बाकी दूसरा खिलाड़ी तो मूक दर्शक ही था .
दोनों  ही चालें खुद उसकी थीं ...
सोची ,समझी,“तयशुदा चालें”....
फिर सारा दोष दूसरों पर क्यूँ डालें ?
एक साथ सारी  ही चालें गलत हो ,
वह भी उसी के खेल में
तो खुद को देखे  
और खुद  आंकलन करे !!
खेल में गोटियाँ स्वयं नहीं चलती
चलाई  जाती  हैं.
लेकिन जब इंसान हो गोटियों की जगह तो
कभी  कभी तो जीवंत हो उठेगा
तो दोष बादशाहत का है
जिसने इंसानी रिश्तों को
शामिल किया अपने खेल में  
या उन प्यादों और सैनिकों का है?
सब के सब एक साथ 
गलत जगह पर खुद से नहीं जा बैठते हैं
 ही ये उनकी सोची-समझी चाल है!
ये तो खेलने वाला जाने  
जो अपनी बादशाहियत को बचाने के लिए
कुछ भी करने को तैयार है
या  फिर  भाग्य  का  खेल   मान  कर
हर  किसी   से  किनारा  करने  को  तैयार  है !!