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मंगलवार, 14 जुलाई 2015

उसने कहा था.....




उसने कहा था...
"ये क्यूँ सोचना कि....
कौन,कहाँ,कब,किसके साथ है..?
जो है...बस आज है..!
इसे एन्जॉय करो..
कल क्या हुआ...
उसकी न सोचो...!
यहाँ अपने लिए ही समय की कमी है...
फिर दूसरों के लिए सोचें...
ये किसको पड़ी है...?
जो था...जैसा था...
उसके बारे में सोचना क्या है...?"

फिर मैं सोच में पड़ गयी कि...
उसने जो किया और अब जो कहा...
उसमें सच्चाई कहाँ है...??
जीवन में इंसान के उसूलों की...
उसके अपने संस्कारों की...
फिर कीमत क्या है..?
एक इंसान जो दूसरों को...
पारवारिक संस्कारों और मूल्यों पर
घंटों भाषण दे सकता है...
इंसानी व्यवहार,भावनाओं 
और चारित्रिक विषयों पर 
बिना रुके न जाने 
कई दिनों तक बोल सकता है...
उसके अपने ही जीवन के मूल्य क्या हुए तब...?
उसके अपने संस्कार...अपने उसूल क्या हुए तब...?
वह अपने किये हुए हर काम को 
बड़े आराम से justify कर देता है...!
लेकिन....
दूसरों को संस्कार के तराजू में 
हर वक्त तोलता रहता है..!
ऐसे व्यक्ति के लिए 
अपना किया सब नगण्य हो जाता है...
शायद इसीलिए लिए वो...
हर रात चैन से सो पाता है...!
और मैं....
हर रात उसकी कुछ ऐसी ही बातों को
सोचती रह जाती हूँ...
शायद इसीलिए...
मैं ठीक से सो नहीं पाती हूँ...!



शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

मुहब्बत दिल में रखती हूँ मैं नफरत भूल जाती हूँ.....






हर इक शिकवा, गिला, सारी रक़ाबत भूल जाती हूँ
मुहब्बत दिल में रखती हूँ मैं नफरत भूल जाती हूँ !

न छेड़ो इस तरह मुझको कि बह निकलें मेरे आँसू
दुखाये दिल कोई सारी नफासत भूल जाती हूँ !

किसी की नम हुई आँखें कोई नज़रें चुराता है
मिले गर प्यार से कोई हिमाकत भूल जाती हूँ !

नज़र से जब मिलें नज़रें नज़र झुक जाती हैं मेरी
रहे धोखा नजर में गर मुहब्बत भूल जाती हूँ !

मेरी शुहरत से जल कोई मुझे बदनाम करता है
बनाये लाख बातें फिर शराफत भूल जाती हूँ !

मुझे वो प्यार करता है नहीं इकरार करता है
मगर जब सामने हो वो शिकायत भूल जाती हूँ !

 तकाजे दोस्ती के कब अदा उसने किए 'पूनम'
मगर हँस के मिले वो जब अदावत भूल जाती हूँ !


***पूनम***