ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट कृति
है ये इंसान...!
और उसके पास एक चीज़ है
बुद्धि.....!
जिसे इस्तेमाल करने की
पूरी-पूरी स्वतंत्रता दी है
ईश्वर ने इंसान को !!
इंसान सब काम करता है
इसी बुद्धि से !
जब कोई काम अच्छा हो जाता है
तो उसका श्रेय अपने सिर पर लेता है
और जब कोई काम
बिगड़ जाता है उससे तो.....
उसका दोष
वह ईश्वर के सिर पर मढ़ देता है !
इंसान सब छोड़ सकता है परन्तु
एक बुद्धि ही है....
जो वह किसी तरह भी
छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता !
जहाँ उसे बुद्धि लगानी होती है
वहां नहीं लगता.....
और जहाँ नहीं लगानी होती है
वहां बेवजह लगाता रहता है !!
बड़ा ही सटीक अवलोकन है, हमारी मीठा गुड़ सटक लेने की प्रवृत्ति इतनी आसानी से जाने वाली नहीं है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder..
जवाब देंहटाएंसही है........यही बुद्धि अहं को जन्म देती है और अहं ही ले डूबता है.........बहुत सुन्दर लगी पोस्ट|
जवाब देंहटाएंसही लिखा। बढिया!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखती
जवाब देंहटाएंहैं , आपकी हर एक रचना बेहतरिन लगती है ।
बुद्धि और विद्या ...दोनों अलग -अलग है .....और दोनों ज़रूरी है //
जवाब देंहटाएंजहाँ बुड्ढी नहीं लगानी होती वहाँ लगाता है ... सटीक बात कह दी .. अच्छा विश्लेषण
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