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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

अशआर...........





अशआर मेरे यूँ  तो ज़माने  के लिए हैं
कुछ शेर फ़कत तुझको सुनाने के लिए हैं !
              
               मेरी ज़रूरतों पे रहा मुझसे बदगुमान
               एहसास तेरे यूँ तो जमाने के लिए हैं !

लफ़्ज़ों के लिए तू न बरत पाया एहतियात
औरों का कद्रदां तू,  दुहाईयाँ   मेरे   लिए   हैं !
              
               दुश्मन को भी न दे ऐसी सजा मेरे हमसफ़र
               रिश्ते बहुत से यूँ तो निभाने   के   लिए  हैं !

गर इश्क है दिलों में खा लें सूखी रोटियां
पकवान यूँ तो ढेरों जमाने भर के लिए हैं !
             
              कायल हूँ तेरी फित्न:अंदाजी पे मेरे दोस्त !
              वर्ना बहुत से दोस्त  ज़माने   में   पड़े   हैं  ! 

गर दो दिलों में इश्क हो तो बनता है रिश्ता
वर्ना बहुत से जिस्म   बाजारों   में   पड़े  हैं !
              
               दौलत के बल पे कौन खरीद पाया है ख़ुशी 
               जो दिल  में हो  ख़ुशी खजाने  खुले  पड़े हैं  !



बुधवार, 25 जनवरी 2012

संबंधों का श्राद्ध करें.......


कुछ लोगों का अपनी ज़िंदगी को देखने का एक ये भी नजरिया है....




जीवन के इस मोड़ पे हम
संबंधों  में  उलझे   हम,
दिखा आइना  दूजे को
खुद से ही अब दूर हैं हम!
                                        
                                        घर में बैर,वाह्य आत्मीयता
                                        कहें इसे हम आध्यात्मिकता,
                                        दूजे  के  सिर  दोष   मढें
                                        हम सच्चे,सब सांसारिकता !

 हैं  संस्कार  हमारे   अब

चालू और चालाक हैं सब,
अब तक जान न पाए हम
किसने चाल चली अबतक !
                                       
                                        इस जीवन में हम जिनको
                                       अब तक दे न सके सम्मान,
                                       जाने-अनजाने कितने ही 
                                       किये , उठाये  हैं  अपमान !

माँ,  पत्नी,  बहना,  बेटी

परिचित,भ्रात,मित्र,अजनबी,
आलोचन   के   हैं   ये  पात्र
कुछ हैं मूक,किंचित वाचाल !
                                         
                                          करें  इकट्ठा  सबको  आज,
                                         भूलें अब तक किये जो काज !
                                         कल का  नहीं हमें अफ़सोस  
                                        जो  होना  हो,  होले  आज !
                                        
करें  बडाई  खुद  की  हम
इन संबंधों को मात करें...
टूटे,फूटे,कुचले,सिमटे
संबंधों  को  याद  करें........
आओ मिलजुल कर हम आज
संबंधों का श्राद्ध करें........!!



२६-०१-२०१२ 

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

स्वादिष्ट रिश्ते........






रिश्ते और स्वाद...
कुछ अजीब नहीं लगता सुन कर...!!!
                             नहीं जनाब !
                             एकदम सही कह रही हूँ...
                             आप भी तनिक अपने
                             आजू-बाजू झांकिए
                             और हर रिश्ते में
                             एक नया स्वाद खोजिये !
बड़े आराम से आप पायेंगे...
इन रिश्तों में स्वाद !
बस कुछ ही रिश्ते
होते  हैं  बेस्वाद ....!
                              कुछ रिश्ते होते हैं 
                              light chocolate की तरह...
                              हलके से मीठे,
                              बड़े ही आराम से...
                              घुल से जाते है
                              जुबान पर रखते ही
                              (और दिल में भी ),
                              कुछ रिश्ते होते हैं
                              dark chocolate की तरह
                              मीठे फिर भी कसैले !
किसी रिश्ते में घुली होती है
ice -cream  सी ठंडक और मिठास,
तो किसी में होती है
चाट की तरह कुछ-कुछ खटास !
                               कुछ रिश्ते होते हैं
                               मिर्च की तरह तीखे और कडुवे,
                               और कुछ होते हैं
                               विष की तरह विषैले...!
किसी रिश्ते में होता है
नमकीन भुजिया सा नमक,
और किसी में होती है
choco-pie सी चमक !
                                किन्हीं रिश्तों में लगी होती है 
                                जुजुब्स की तरह ऊपर से चीनी
                                लेकिन भीतर-भीतर
                                होते हैं चिपचिपे से,
                               और कुछ रिश्ते होते हैं
                               ऊपर से lolipop की तरह  मीठे
                               लेकिन भीतर-भीतर  कुछ अजीब  से !
हर रिश्ता इस जिन्दगी का
जुड़ा हुआ है कुछ इसी तरह के
स्वाद  की  तरह हमसे भी....!
हर तरह के ज़ज्बात,एहसास
महसूस होते हैं इन रिश्तों में भी !
और इन्हीं से है बहार
अपने इस जीवन में भी......!!
यदि न हों ऐसे रिश्ते
आपके जीवन में.............
तो जारी रखिये 
 खोज आप भी.........!!!



शनिवार, 14 जनवरी 2012

आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे.........


 


"आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे "


ये गाना सुना है कई बार
और खुद गया भी है...
साथ ही इससे जुड़े ज़ज्बातों को
महसूस भी किया है पूरी शिद्दत से
उस समय ......
जब  दिल  के बहुत नज़दीक से 
गुज़रा था कोई पहली बार !
और मेरे पाँव अपने आप ही 
ज़मीन से ऊपर उठ गए थे...!!
आज भी यही गाना
मुकम्मल सही बैठता है
जबकि अपने ही होने का एहसास
बहुत करीब से गुजरता है मेरे..
और तभी धीरे से 
कोई नज़दीक आ कर
मेरे कानों में फिर से 
गुनगुना जाता है यही.....


" आजकल पाँवज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे "




मंगलवार, 10 जनवरी 2012

डायरी का ये अनछुआ पन्ना..........

डायरी का ये अनछुआ पन्ना...कितने दिन पहले लिखा गया था लेकिन आज के परिवेश में भी उतना ही मायने रखता है और सही बैठता है जितना कि उस समय जब कि मैंने अपने मन के झंझावात में इसे अपने इर्द-गिर्द महसूस किया था और अनजाने ही लिख गयी थी...! कुछ लोग उस समय भी मेरे साथ थे और आज भी हैं मेरे साथ ही....जो मेरी उस मन:स्थिति में मेरे बराबर के साझीदार रहे हैं ! 'आज' जो भी है...बेहतर ही है....जीवन की बहुत सी 'गुल्थियाँ'  अपने आप से सुलझती जातीं हैं....बस ज़रुरत होती है हमें 'धैर्य' रखने की....क्यूँ कि समय भी देखता है कि आप कब तक नहीं टूटते..........  
और फिर...... 
                                                     
                        


स्थान.......खतौली(देहरादून)
दिनांक.....२९ अक्टूबर, २००७
                                  
                     बाहर कुहासा ही कुहासा है लेकिन भीतर का कुहासा छंटता सा दीखता है ! न ! ये शरीर की ऑंखें नहीं हैं जो इसे देख सकें...इसे देखने के लिए आँखों की ज़रुरत ही नहीं है ! बस महसूस करने और 'होने' की ज़रुरत है !  ये 'होना' जो अब तक असंभव लगता था....अब बस 'है' ! ये कैसे हुआ ?  क्यों हुआ ?? और किससे हुआ ???..न जानने की ज़रुरत है और न समझने की ! बस हो गया....यही एहसास ज़रूरी है और सच कहें तो यह भी ज़रूरी नहीं है....ज़रूरी है तो बस 'है' !......'होना' !!
                                    क्यूँ नहीं हम किसी उड़ती चिड़िया के पंखों को देखकर खुश हो पाते, क्यूँ उसकी चहचहाहट को enjoy  नहीं कर पाते, पत्तों की खडखडाहट, उनकी भीनी  सी  सुगंध  को  महसूस कर पाते, जमीन पर उगी दूब  पर दूर तक पसरी ओस की बूँदें हमें ठंडक क्यूँ नहीं दे पातीं, धीमी हवा के एहसास से हिलते हुए पेड़ के कुछ पत्ते हमारे दिल को क्यूँ नहीं गुदगुदा पाते, क्यूँ सड़क के किनारे खड़े एक छोटे से बच्चे की नाक पोंछती मुस्कराहट हमारे चेहरे को एक मुस्कान दे पाती......???  दरअसल हमने वो  दृष्टि  ही खो  दी है, लोगों की भीड़ में हमें रहने की आदत हो गयी है हर वक़्त, एक बंधे-बंधाये  ढर्रे से जीने की  आदत हो गयी है हमें ! या तो सिर्फ काम-काम-और काम ! या सिर्फ वही भीड़, वही लोग, वही चेहरे, वही फूहड़ सी बातों पर हँसना, वही किसी के शरीर को छू कर खुश होना, भीतर ही भीतर कुछ अनजानी सी सनसनाहट महसूस करना या फिर अपने हिसाब से उस ठन्डे से स्पर्श में गर्माहट का एहसास करना...और भी न जाने क्या-क्या...??  समाज का ये पहलू भी किसी से अनछुआ नहीं है.....अपने इर्द-गिर्द कुछ ऐसे ही लोगों को महसूस कर रही हूँ आजकल ! सब कही न कहीं कुछ खोज रहे हैं...हर रिश्ते में कुछ लेने-देने का सम्बन्ध जुड़ गया है.....भले ही वह किसी भी स्तर पर हो...! किसी को किसी से कुछ भौतिक स्तर पर चाहिए, तो किसी को किसी से भावनात्मक स्तर पर या फिर शारीरिक स्तर पर भी....यहाँ तक कि किसी के शरीर को छूना भी तभी आनंद देता है जब उस छुअन से शरीर में कुछ अनजानी सी हरकत हो....!!
                                      अचानक अजीब सी लगने लगी है ये दुनिया ! यहाँ हर चेहरा दूसरे चेहरे से अनजाना है, हर मन दूसरे के मन से भिन्न है फिर भी लोग अपने हिसाब से एक-दूसरे में अपनी तरह के लोग खोजने में लगे हुए हैं ! क्या खोज रहे हैं..यह उन्हें भी नहीं मालूम ! क्यूँ खोज रहे हैं...ये भी नहीं मालूम और कब तक ये खोज जारी रखेंगे.....ये तो शायद उन्हें कभी भी मालूम न हो सके ! हर कोई दूसरे से तभी जुड़ रहा है जब वहां उसे कुछ मिलता सा दीखता है...अकेले होने की आदत, जरा देर के लिए भी अपने साथ रहने की आदत छुट सी गयी है ! खुद के साथ अकेले रहने में उन्हें डर सा लगने लगा है....हमेशा चाहिए कि कोई उनके किये को देखे, कोई प्रशंसा करे....शायद लोग दोस्त भी इसीलिए बनाते है कि उनके होने का एहसास कराने वाला कोई उन्हें अपने अगल-बगल हर समय चाहिए...!! कभी किसी को गिफ्ट भी देते हैं तो कहीं अपने अन्दर "कुछ दे सकते हैं" की भावना को पोषण मिलता है..! सिर्फ देने के लिए या यूँ ही देने के लिए किसी के हाथ नहीं उठाते शायद यहाँ मैं जो कहना चाह रही हूँ...सही शब्द नहीं हैं मेरे पास !
                            कुछ अजीब सा लगने लगा है सब सोच कर...या यूँ कहें अब अजीब भी नहीं लगता....कुछ अपने भीतर, कुछ अपने ही साथ होने का एहसास ज्यादा से ज्यादा होने लगा है...!! इतने सालों में जो किया, जितना भी किया, जब वही सब धुल-पुंछ गया...फिर किसके लिए, किसलिए और क्यूँ...!!  इतने सालों से यही सब तो किया, प्यार, केयर जैसे शब्द केवल सुने ही नहीं जिए भी खुद, लेकिन आज लगता है अगर इतना जीने के बाद भी अगर हम वहीँ के वहीँ हैं तो अपने साथ न्याय नहीं कर पाए हम !! वहीँ के वहीँ अटके रह गए, दूसरे तो अपना-अपना देखते रहे और हम भी उनका मुँह...!!     
                      अभी सबके साथ हो कर भी "हूँ",अपने साथ "हूँ" और अकेले में भी "हूँ" !  बाहर का  कुहासा घना हो तो कुछ भी नहीं दीखता लेकिन जब मन की आँखें खाली हों...न आंसू हों और न ही धुंधलका ...तो सब साफ़-साफ़ नजर आने लगता है ! बाहर के कोहरे को पार करने के लिए या आगे कदम बढ़ाने के लिए किसी के साथ की, किसी के हाथ की ज़रुरत होती है....लेकिन जब दूरी भीतर की तय करनी हो तो न किसी सहारे की ज़रुरत होती है और न ही ज़रुरत होती है कदम बढ़ाने की.........!!!  



शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

मन विश्राम वहाँ है पाता ......





जो  अपना  था  दूर हो  गया 
जीवन से यूँ शब्द खो गया, 
मन अपना ही मीत मिला जब
मन विश्राम  वहाँ  है पाता !

बिना बात के हम  लुट  जाएँ
बिन   ढूंढें ही  कुछ   पा जाएँ,
बिना बात जब हम मुस्काएँ
मन  विश्राम   वहाँ   है पाता !

मन है जो बिन बात ही चलता
तन है जो बिन बात सुलगता,
जीवन यूँ  ही चलता  रहता
मन   विश्राम   वहाँ   है पाता !

सोच सोच के जब थक जाएँ
चलते-चलते   जब रुक जाएँ,
करें बंद  आँखें   तब अपनी
मन विश्राम  वहाँ   है पाता !

सूफी अपने स्वर   में गायें
मंदिर में   भगवान्   बुलाएं,
ये सांसें जब रुक सी  जाएँ
मन विश्राम  वहाँ  है  पाता !

क्या पाया था क्या खोया है ?
जिसने सोचा   वो रोया है,
मन  था,  पीछे छूट गया है
मन विश्राम  यहाँ  है पाता !

०७-०१-२०१२


गुरुवार, 5 जनवरी 2012

या खुदा........




करके  बदनाम  मुझे  वो  हुए  हैं  यूँ  बेज़ार !
जो  है  जालिम वो मुझे किस तरह वफ़ा  देगा !!

नासमझ  मैं,यूँ  करती रही एतबार-ओ-यकीन ! 
न  समझ  पाई  मुझे  वो  भी  यूँ  दगा   देगा !!

उसकी  बातों  ने  किया है मुझे यूँ  कत्ले  आम !
मेरा  कातिल  क्या  मेरे  हक में  फैसला देगा  !!

उठा के हाथ कभी मागूँ  भी तो  क्या मागूँ !
मेरा    पर्वर्दगार     मुझको     हौसला    देगा !!


या खुदा ! बक्श  दे  मुझको मेरे  इन  रफ़ीकों से  ! 
कभी  तो  तू  भी  मेरे  हक  में  फैसला  देगा  !!

०५-०१-२०१२



सोमवार, 2 जनवरी 2012

मन विश्राम यहाँ है पाता......




बोलों को जब गीत मिले तो
जीवन को संगीत मिले तो,
कुछ बिछड़े से मीत मिले तो
मन विश्राम  वहाँ   है  पाता  !

कुछ न सोचें और लिख जाएँ
शब्द अनमने  से  मिल जाएँ,
होंठ न खुलें  फिर भी  गाएं
मन  विश्राम वहाँ  है पाता !

मन की दुविधा जब मिट जाए
दूर कोई जो पास आ जाए,
बिना छुए कोई   छू  जाए
मन  विश्राम वहाँ  है पाता ! 

पंख नहीं फिर भी उड़ जाएँ
पर्वत पर यूँ ही चढ़ जाएँ,
बाहों  में आकाश  उठायें
मन विश्राम  वहाँ  है पाता !

सांस यूँ ही थम सी जाती है
कोयल जब पी पी गाती है,
याद किसी की  यूँ  आती  है
मन विश्राम  वहाँ  है पाता !

मैंने ऐसा गीत जो गाया
जो खोया था फिर से पाया
बिन आये ही जब तू आया,
मन विश्राम यहाँ  है पाता....!