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रविवार, 25 दिसंबर 2011

कुहासा.....




खतौली,देहरादून...
२९-१०-२००७

लम्बे-लम्बे बांसों के झुरमुट में,बड़े-बड़े दरख्तों के बीच, ऊँची ऊँची इमारतों और मकानों के बीच में जैसे कुहासा अपनी जगह खोज लेता है, हर छोटे बड़े space को भर देता है......मन की शान्ति भी कुछ उसी तरह एक बार space बनाने लगे तो हर जगह, किसी भी रिश्ते में, किसी भी स्पर्श में, किसी भी emotion में पैर पसारती चली जाती है. ऊपर से आप भले ही हिले हुए दिखते हैं लेकिन भीतर ही भीतर कुछ पसरता सा जाता है कुहासे की तरह....शान्ति.....शान्ति.....शान्ति....!!!


9 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही कहा है आपने पूरी तरह सहमत हूँ !

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  2. ऊँ शान्ति ...शान्ति...शान्ति...

    क्या खतौली देहरादून में भी है.
    मैं तो एक खतौली मेरठ मुजफ्फरनगर के
    बीच वाले को ही जानता हूँ.

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  3. कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. बिलुल सही बात कही है आपने....सहमत हूँ इससे शत प्रतिशत पर बहुत यत्नों के बाद जाकर ऐसा आलम आ पता है |

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  5. वाह अद्भुत ...पूनम जी सच में क्या खूब बात कही है जब आप एक बार शांति को फील कर लेते हैं तो बस फिर हर जगह शांति मिल जताई है क्यों की वो होती तो अपने अंदर है न
    शांति ! शांति !! शांति !!!

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  6. वाह...कुहासे को बिम्ब बना कर बहुत कुछ कह दिया,आपने.

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  7. वाह....
    बहुत अच्छी बात कही आपने..
    सच है...शान्ति अपने भीतर होती है...

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  8. तब धूप में भी मिलती है ..शांति ..

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