मन......
न जाने कितनी बार हुआ टुकड़े-टुकड़े !
इतना कि.....
कागज़ की मानिंद
बिखर गया हवा में !
कोई ज़ज्बात,कोई एहसास
इससे अछूता न रह पाया !
कभी अपनों ने ही तोड़ा-मरोड़ा,
कभी खुद हमने इसे सताया !कितनी बार ही इसे
हमने बहलाया-फुसलाया,
लेकिन ये न माना..!!
फिर अचानक एक दिन ये खुद ही...
आ गया मेरे पास
थका हारा,बेहद उदास !
अपनों ने ही न था बक्शा उसे,
जाने कितने आरोपों और तानों से
नवाज़ा था उसे,बार-बार अपने पास बुला कर
फिर ठुकराया था उसे...!
मैंने बड़े प्यार से
उसके सिर पर हाथ फेरा,
उसे सहेजा-समेटा और एकाएक.....
सारे के सारे टुकड़े
जोड़ डाले हमने
साथ मिल कर..!!
अचानक देखा कि...
उस पर उभरने लगीं हैं
चंद शक्लें....
जानी-पहचानी सी,
और कुछ शब्द भी
अनजाने-पहचाने से..,
कुछ सीधे-साधे
कुछ टेढ़े-मेढ़े से,
साथ ही कुछ एहसास भी अपने-बेगाने से...
जो केवल उसके थे !!
और फिर कविता के
छंद की मानिंद
जुड़ गया ये मन,
मसरूफ हो गया
फिर से खुद को
समेटने सहेजने में..!!
जैसे अपने टूटे खिलौने को
एक बच्चा खुद जोड़ लेता है ,
और मशगूल हो कर
उसी से खेलने लग जाता है !
क्योंकि .....
इस बार अपने खिलौने का जन्मदाता
वह स्वयं होता है....!!
adhbhut...sunder....
जवाब देंहटाएंखिलौने और बच्चे से बहुत कुछ समझा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. शानदार.
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ मैं..........हैट्स ऑफ |
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya rachna..
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
गहन सोच को दर्शाती अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंजुड गया मन
जवाब देंहटाएंबहुत हिम्मत है आपके अंदर बहुत जिजीविषा है ..आसान नहीं है इस यात्रा में उस पड़ाव तक पहुंचना जहाँ आप पहुँच गए हो !
आपको फिर फिर प्रणाम !
"कातिल ने इस दफा भी मेरी जान बक्स दी ,
जवाब देंहटाएंअब इस अदा पे जान दिए जा रहा हूँ मैं !"
by--
Anand Dwivdi....
उपरोक्त स्थिति हो जाए तो आपकी पंक्तियाँ ही फिट बैठती हैं....!!
यहाँ तक आने के लिए धन्यवाद...!!