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सोमवार, 24 नवंबर 2014

मुखौटे........




जहाँ आस्था है..
वहाँ विश्वास है...!
जहाँ प्रेम है.. 
वहां समर्पण है...!
और जहाँ सादगी है..
वहाँ ये सब  एकसाथ हैं...!
असल में हमने 
अपना स्वाभाविक रूप ही
खो दिया है कहीं...!
सादगी न जाने 
कितनी परतों में
छुप गयी है...!!
हर चेहरे पर न जाने कितने
मुखौटे चढ़े हुए हैं कि...
सादगी को अपना चेहरा
आजकल खोजे नहीं मिल रहा है...!!
देखिये तो....
आपके पास कितने मुखौटे हैं...??


धर्मशाला से.....
18/11/2014


रविवार, 16 नवंबर 2014

अपना रास्ता...





किसी भी भाषा में बात करो
उदासी रोशन करने के लिए
शब्दों के दिए की...
ज़रूरत नहीं होती...!

सपनों का अस्तित्व है..
वो किसी तरह भी नहीं छुपते..!

माथे पर बेचैनी की लकीरें
अपाठ्य हों फिर भी
सब तो नहीं...
हाँ...
हर काल में कुछ लोगों के लिए
पठनीय हो ही जाती हैं...!

नदियाँ पगडंडियों के साथ ही बहती हैं...
राजमार्गों के साथ नहीं..
इसलिए नदी के किनारे की जमीन
बंजर हो ही नहीं सकती...! :)
हाँ...
जिद की फसल उपजेगी या नहीं..
ये तो विधाता जानता है..
या फिर...
फसल बोने वाला...!!

कोई भी रास्ता हो...
खुद तक पहुँचना बहुत आसान होता है..!
खुद की कोई सरहद नहीं..
न पगडंडी...
न राजमार्ग...
न नदी...
न पेड़....!
कोई रास्ता नहीं...
कोई संकेत नहीं...!
अपनी अव्यक्त दुनिया की अभिव्यक्ति...
क्या तुम स्वयं नहीं...!!

***पूनम***
On my way to Dharmshala...
16/11/2014

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

आप की दिल्लगी को क्या कहिये.....





आप की दिल्लगी को क्या कहिये..
आप ही न सुने..तो क्या कहिये..!

हम तो जागा किये हैं रातों को..
आप ही सो गये..तो क्या कहिये...!!

इश्क में आपके नशा सा है..
हम नहीं होश में..तो क्या कहिये..!

फूल ही फूल हर तरफ दिखते..
आप ही हैं चमन..तो क्या कहिये..!

मैं कहूँ और आप आ जाएँ..
ऐसी किस्मत नहीं..तो क्या कहिये...!

रात बीती वो सुबह आई है..
रौशनी हो गयी..तो क्या कहिये...!

आप आये तो मेरी महफिल में..
मुस्कुराई फिजा..तो क्या कहिये...!

बेकरारी में भी करार मिले..
आप आयें अगर..तो क्या कहिये...!

राह पर अब निगाह है मेरी..
उनकी आहट मिली..तो क्या कहिये...!

कान में गुनगुना गया कोई..
वो नहीं सामने..तो क्या कहिये...!

चाँदनी इस कदर है शरमाई..
रात पूनम हुई..तो क्या कहिये..!


***पूनम***
5/10/2014


मंगलवार, 19 अगस्त 2014

तू मेरा.....मैं तेरी.....







अपनी अपनी दुनिया से 
दो कदम बाहर सरक जाना....
कुछ तो है जरुर....!
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं..?
उम्र का ये मुकाम...
और ये खलिश....

फिर फर्ज़ क्या करना है...
यकीनन कोई तलाश तो है...!
है न....??
गर सब फर्ज़ ही करना है तो..
क्यूँ सोचें कि ये क्यूँ है...?
वो क्यूँ है....???
बस....
आज ये फर्ज़ करती हूँ....
तुम मेरे....
मैं तेरी......!!




***पूनम***
16/05/2014




ज़िंदगी.....





तुम्हें पढ़ना इक जिंदगी सा लगता है....
नहीं जानती वो जिंदगी कौन सी है...
जो जी रही हूँ...
जो जीना चाहती थी...
या जो बस कहीं ख्वाब में ही 
बुनी जा सकती है...!
चाहने से ही कुछ नहीं होता है...
ख्वाब भी सबका सच नहीं होता है...!!
देव....!
कुछ है कहीं...
जो अनजानों को भी बाँधता है..
हम सभी के बीच इक ऐसी ही डोर है...
जिसका खिंचाव समय समय पर...
एहसास दिला जाता है कि..
कहीं कुछ लोग हमारी तरह के भी हैं... !!




***पूनम***



रंग......










बदरंग चाहतों की कहानी 
कुछ और ही रही होती....
अगर तुम उस लाल फूल को
शरमाते हुए भी छू लेते...!
तो क्या पता...
उसकी नीली चुनरी भी
लाल हो जाती...
और तुम्हारे आकाश का रंग
कुछ बैंगनी सा हो गया होता...!
देव...!
अबकी बार की बारिश में
सारे पुराने रंगों को धो डालो...
क्यूंकि इस बार का इन्द्रधनुष
ढेर सारे रंग ले के आया है
सिर्फ तुम्हारे लिए...!
उसके माथे पे सजा रंग भी
उसी में से एक है...!!

मुबारक हो सखि....
इस बार की अधूरी कविता के...
सारे खुशनुमा बदरंग रंग..
देव की तरफ से तुम्हारे लिए....!!

***पूनम***
29/07/2014




सोमवार, 18 अगस्त 2014

कोई हमदर्द....मेरा साया है...




कोई चुपके से रात आया था..
कोई हमदर्द..मेरा साया था..!

देर तक रो रही थी तन्हाई..

आप ने चुप कहाँ कराया था..!                  

एक हम ही मुरीद थे उसके..

उसने रिश्ता कहाँ निभाया था..!        

आप समझे हैं बात कब मेरी..

उसकी बातों ने ही लुभाया था..!                

आइना था रकीब वो मेरा..

इस तरह उसने हक जताया था..!            

आप आए तो कुछ सुकूं आया..

दर्द ने यूँ बहुत सताया था..!

तीरगी ही मिली थी राहों में..

आप ने कब दिया जलाया था..!

प्यार ही प्यार था तेरे दिल में..

क्यूँ नहीं फिर इसे निभाया था..!

रात भर जागती रही  'पूनम '..            

चाँदनी ने गले लगाया था..!


16/8/2014



शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

हर इक लम्हा तेरे आने का नज़रों में उतर जाये....







हर इक लम्हा तेरे आने का नज़रों में उतर जाये.. 
गुजरता है अगर ये वक्त तो यूँ ही गुजर जाए...!

अगर मैं मूंद लूँ आँखें तो तेरे ख्वाब आते हैं...
जो खुल जाएँ मेरी ऑंखें तेरा चेहरा संवर जाए...!

मेरा दिल जानता है ये तुझे मिलने की चाहत है...
मगर जब वक्त आता है तू मिलने से मुकर जाये...!

यही ख्वाहिश अब मेरी जिंदगी भर की कमाई है...
के जब तू पास हो मेरे हर इक लम्हा ठहर जाये...!

फलक पर चाँद तारे अब मुझे इक साथ दिखते हैं...
मुझे तू ही नज़र आये...जहाँ तक ये नज़र जाए...!


२४/०४/२०१४
 


गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

हमारी बज़्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...






हमारी बज्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...
नए परवाने आ जाएँ...बुलाने आ गए हैं वो...

बहुत शातिर है कातिल वो निशां अपने न छोड़ेगा...
मगर हम भी नहीं हैं कम...बताने आ गए हैं वो... !

किनारे पर खड़े हो करके वो आवाज़ देते हैं...
बड़े अंदाज़ से नैय्या डुबाने आ गए हैं वो...

मेरे ख्वाबों खयालों में कभी चुपके से आ कर के
मेरी आँखों से नींदों को चुराने आ गए हैं वो...!

न जाने कब से था मायूस दिल का बागबां दिल मेरा 
गुलो गुलज़ार गुलशन को खिलाने आ गए हैं वो...



१७/०४/२०१४



मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

तुम्हें ये हक दिया किसने दीयों के दिल दुखाने का...








चला है सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का 
तुम्हें ये हक दिया किसने दीयों के दिल दुखाने का...!!

इरादा छोड़िये अपनी हदों से दूर जाने का 
जमाना है ज़माने की निगाहों में न आने का...!!

कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो 
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का...!!

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का...!!

ये मैं ही था बचा कर खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का...!!





           *वासिम बरेलवी साहेब*

न जाने क्यूँ ये गज़ल आज बार बार याद आ रही है...
तो सोचा क्यूँ न साझा कर लूँ आप सबके साथ......!


शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

ख्वाब वो तो नहीं जो दिया आपने....





ख्वाब वो तो नहीं जो दिया आपने...
मेरी नींदों से ही तो लिया आपने...!!

मेरी पलकों में था जो छुपा ही हुआ...
बस उसी ख्वाब को था जिया आपने...!!

हम समझते थे जिसको है हमदम मिरा...
वो भरम आ के तोड़ा मियां आपने...!!

थे बचाए हुए आँधियों से जिसे...
अब बुझा ही दिया वो दिया आपने...!!

दिल की चादर फटी की फटी रह गयी...
उसको अब तक मियां न सिया आपने...!!

रात पूनम की फिर से अमावस हुई...
कर दिया  मेरा खाली हिया आपने....!!


***पूनम***
१०/०४/२०१४ 



रविवार, 6 अप्रैल 2014

तलाश....







इस ज़िंदगी में हमें है तलाश....
किसकी....?
और क्यूँ....?
यहाँ क्या है हमारा...?
जो  है हमारे पास...
क्या वो हमें संतोष देने के लिए पर्याप्त नहीं...??
ज़िंदगी भर हमें रहती है तलाश....
प्रेम की...अपनापन की..
किसी ऐसे की तलाश... 
जो हमारी भावनाओं को समझ सके...
हमारी संवेदनाओं को..
और वेदनाओं को समझे...
हमारी शारीरिक ज़रूरतों की पूर्ति कर सके...!
और ये ज़िंदगी बस इसी के इर्द गिर्द 
घूम कर खत्म हो जाती है...!
हम खोजते हैं इन्हें...
अपने साथ रहने वालों में...
नहीं तो घर से बाहर किसी अन्य में...!
लेकिन नतीजा नदारत...!
कभी कहीं एक मिलता है तो 
दूसरा तिरोहित हो जाता है..! 
और प्रेम....
प्रेम तो शायद ही मिलता हो कहीं...!!
कहना मुश्किल है कि 
ये होता भी है या नहीं..!
हाँ....साथ रहते रहते... 
कभी कभी कुछ क्षण के लिए 
झलक भर दिखाई देता है 
फिर इस ज़िंदगी के चूल्हे में 
रोटी कपड़ा मकान की बलि चढ़ जाता है..!
शायद इसीलिए.. 
लैला...मजनू 
शीरीं...फरहाद 
रोमियो...जूलियट का प्रेम अमर है 
क्यूँ कि वो इस चिता पर 
अपने प्रेम की बलि चढ़ाने से बच गए...!
काश कि उन्हें भी हमारी तरह ही ज़िंदगी मिल पाती...! 
फिर ये दुनिया देखती कि 
उनकी प्रेम की भावना... 
कितने दिन तक बच पाती....!!




सोमवार, 31 मार्च 2014

आप जब से करीब आये हैं...





आप जब से करीब आये हैं...

गीत इस दिल ने गुनगुनाये हैं...!!


जिंदगी मेरी इस तरह महकी...

आप ने फूल यूँ बिछाए हैं...!!


आप नज़रों में इस तरह उतरे...

जैसे तारे से झिलमिलाये हैं...!!


चाँद बादल में छुप गया ऐसे...

आप खुल कर जो मुस्कुराये हैं...!!


आप की जुस्तजू में तड़पे है...

दिल को राहों में हम बिछाए हैं....!!


रविवार, 23 मार्च 2014

क्या हो गया है हाल हमारा न पूछिये...




जब से हुआ निकाह हमारा न पूछिए...      
बेहाल है ये हाल हमारा न पूछिए...!!

तारीफ भी करे वो तो लगती उन्हें है तंज...
जीना हुआ मुहाल खुदारा न पूछिए...!!

जब उनकी मुस्कुराहटों पे हम हुए निसार...
फरमाइशों का खोला पिटारा न पूछिए...                  

अब देखती नहीं है पड़ोसन कभी उन्हें...  
छुप छुप किया था कितना इशारा न पूछिए...!!

'पूनम' की रात और छत पे चाँद आ गया...
पर उनके सर पे किसने उतारा न पूछिए...!!  



शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

आप जब से हमें नसीब हुए...



आप जब से हमें नसीब हुए...
जानशीं दोस्त कुछ रक़ीब हुए...!!

वस्ल था जब तलक फ़िजा महकी...
हिज़्र में हालत क्यूँ अजीब हुए...!!

दिन में रौशन हुए हैं मयखाने...
गम के प्याले मेरे हबीब हुए...!!

हुस्न को बेनकाब जब देखा...
नासमझ भी सभी अदीब हुए..!!

रात  पूनम की और नींद नहीं,
खुशनुमा पल भी अब सलीब हुए...!!


***पूनम***


सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

क्रांति.... एक बाहर....एक भीतर....








क्रांति....

एक बाहर....
एक भीतर....!
सिर्फ शब्द ही नहीं ला सकते हैं क्रांति...
मौन भी ला सकता है !
आस्था हो खुद पे तो...
पर्वत भी हिल सकता है...!
मौन को भी...
विद्रोह की भाषा सिखाई जा सकती है..!
या मौन को भी....

क्रांति का हथियार बनाया जा सकता है...!
और जब यही मौन मुखरित होता तो....
उसके सामने कोई नहीं टिक पाता...!!





सोमवार, 13 जनवरी 2014

जीना तो अभी बाकी है...









ज़िन्दगी मिल गयी...जीना तो अभी बाकी है....
बहुत हैं क़र्ज़...उतरना तो अभी बाकी है....!

किसी भी हद से गुज़र जाए इंसान मगर...
मौत की हद से गुज़ारना तो अभी बाकी है...!

खुश रहे तू..मेरे हमदम..मेरे दिलदार... सनम...
आइना दिल है...उतरना तो अभी बाकी है...!

है मुहब्बत तो मुझे खुल के क्यूँ नहीं कहता...
झुकी है मेरी नज़र...इसमें शर्म बाकी है...!

मेरी वफाओं का तेरी नज़र में मोल नहीं....
हो अदावत तेरी जानिब वो ख़ला बाकी है...!




***पूनम***
बस अभी अभी....




शनिवार, 11 जनवरी 2014

हसरतें.....





बहुत सी ज़रूरतें...
बहुत सी हसरतें....
सिमट गयी हैं खुद ब खुद...!
अभी भी प्रक्रिया जारी है...! 
कुछ बची रह गयी हैं शायद अभी भी...!
रोज खुद को देखती हूँ...
समझती हूँ...
और सिमटते हुए देखती हूँ इनको...!
ये सिमटना कब पूरा हो जाये ...
पता नहीं....!!


***पूनम***