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सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

.'बस यूँ ही'..............



गर पढ़ो तुम जो  तरन्नुम में.....ग़ज़ल होती है
इसमें कुछ बात मोहब्बत की....बयाँ होती है !
और अल्फाज़ भी होते हैं कभी....तल्खी लिए
चोट दिल पर करे कोई तो......अयाँ होती  है !

इसमें कुछ शख्स भी शामिल हैं यारों..'बस यूँ ही'
कोई  आशिक  तो  कोई  बज्मे रवाँ...'बस यूँ  ही' !
अश्क और इश्क से बरकत है बज़्म....'बस यूँ ही'
ये बज़्म मेरी दिल अज़ीज़ मुझको......'बस यूँ ही' !

मेरी महफ़िल है.....नज़्म मेरी......शम्मा,परवाने
न जाने क्यूँ.......तुझे न भाए......हम न ये जाने ?
तुझको आदत है भटकने की यूँ....महफ़िल-महफ़िल 
शमाँ जली मेरी......क्यूँ उस पर नज़र......परवाने ?  

खुदा के नूर से....रौशन है आज....बज़्म मेरी
सभी का करती...एहतिराम है ये....बज़्म मेरी !
है एतबार...इंतज़ार....इन्तिखाब......'उसका'
उसके आफ़ताब से....पुरनूर है ये....बज़्म मेरी !

न इसमें गम है.....न एहसास बदगुमानी का
न बददुआ ही......न एहसास है तकब्बुर  का !
रहे पुरनूर ये महफ़िल......खुदा की नेमत है
भरोसा मुझको है ....मेरे खुदा की बरकत का..!

16 टिप्‍पणियां:

  1. नज़्म इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

    कुछ कठिन शब्दों (जैसे तकब्बुर) के अर्थ दे देतीं तो हम जैसे आम पाठकों को और भी समझ में आती।

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  2. थोड़ा कठिन हो गयी शब्दावली..समझते हैं धीरे धीरे..

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  3. milegee khudaa kaa barkat aapko
    ye hamne bas yun hee
    nahee kahaa

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  4. प्रवीण जी ने सही कहा है ... कुछ शब्दों के अर्थ समझने होंगे ....पर फिर भी सार समझ आ रहा है ...
    खुदा की बरकत में ही भरोसा होना चाहिए ... किसी को ज़बरदस्ती अपनी बज़्म में नहीं बुला सकते

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  5. भरोसा भी खुदा की नेमत ही है..उम्दा नज़्म..

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  6. सुन्दर....चौथा पैरा सबसे अच्छा लगा |

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  7. बेहतरीन नज़्म...
    दाद कबूल करें...

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