विद्याजी....
आपकी नज़र चंद पंक्तियाँ......
आपके प्रत्तुतर में लिखते-लिखते कुछ इतना लिख गयी तो सोचा कि पोस्ट में ही लगा दूँ....
आपने लिखा है....
"प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो.....
मगर रिश्ता मुकम्मल तभी होता है न जब इसको कोई नाम मिले....."
कुछ रिश्ते मुकम्मल हुए बिना भी
ताउम्र साथ रहते हैं..
बस....
नाम नहीं दे पाते हम उन्हें...!
या फिर हम खुद ही
नाम देने से कतराते भी हैं....!!
और फिर प्यार को...
कोई नाम दिया जाए...
ये ज़रूरी तो नहीं... !
आज के इस दौर में
कौन फ़िक्र करता है
रिश्तों को मुकम्मल करने में !
या फिर उन्हें
कोई नाम देने में...!
जब बिना नाम दिए ही
सारे रिश्ते निभा दिए जाएँ...
दूर रह कर भी
सारे एहसास जी लिए जाएँ....
फिर रिश्तों की अहमियत
केवल घर की चारदीवारी तक
या फिर सामाजिक प्रतिष्ठा
बनाए रखने तक ही
सीमित रह जाती है....!
प्यार जिया जाता है...
निभाया नहीं जाता........
जब हम रिश्तों में
प्यार और respect खो देते हैं..
तो ऐसे रिश्तों को.....
बस निभाना होता है !
प्यार की पूर्ति कहीं....
और भी की जा सकती है !
क्यूंकि प्यार तो एक भावना है,
एक फीलिंग.......
और रिश्तों को निभाने के लिए
इस फीलिंग की ज़रुरत
'शायद 'बहुत ज्यादा नहीं पड़ती...!!
ऐसे में प्यार की भावना को
इस सब अलग रखना ही
बेहतर होगा......!!
वैसे भी आज कल तो
बिखरा हुआ सा है....
प्यार हर जगह....
कभी कहीं.....
गुलाब के रूप में
तो कभी कहीं....
चोकलेट के रूप में....!
और इस भावना की
कद्र करती हूँ मैं भी...!!
अब ये भी प्यार का
भावनात्मक एक रूप ही तो है.....
आप क्या कहेंगे इसे......??
क्या नाम देंगें इसे......???
इसलिए प्यार को
रिश्तों से अलग रखिये...
लाल गुलाब पकडिये एक हाथ में..
और दूसरे हाथ से चोकलेट खाइए...!
रिश्तों को भी निभाइए
(मगर प्यार से)...
और प्यार को भी
अलग ही रखिये
(रिश्तों से) !!
और गाइए.........
"प्यार को प्यार ही रहने दो.......
कोई नाम न दो................."
Is ke jawaab mein meree nayee kavitaa
जवाब देंहटाएंक्या ये ही काफी नहीं?
क्या फर्क पड़ता है ?
गर मेरे चेहरे पर
तुम्हारा
नाम नहीं पढता कोई
मेरे दिल में तुम्हारी
तस्वीर नहीं देखता कोई
मेरे जहन में बसे तुम्हारे
ख्याल को
समझता नहीं कोई
मेरी हर साँस से
जुडी तुम्हारी साँस का
अहसास किसी को नहीं
मेरे,तुम्हारे एक होने को
महसूस करता नहीं कोई
तुम मेरे लिए
मैं तुम्हारे लिए जीता हूँ
क्या ये ही काफी नहीं?
09-02-2012
129-40-02-12
bahut khoob sir
हटाएंपूनम दी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जवाब है आपका......मैंने आज ही आपकी पिछली पोस्ट भी पढ़ी और विद्या जी का कमेन्ट भी......एक कोशिश की मैंने उनकी बात का जवाब देने की.....आप देख लें....
और हाँ राजेंद्र जी की कविता भी मुझे बहुत पसंद आई ।
पूनम जी !
जवाब देंहटाएंगुलाब आप सिन्हा जी को दे ही चुके होंगे !!... बेहतर है कि चाकलेट ही खाया जाए !! :) :)
आप सभी को मेरी तरफ से चॉकलेट मुबारक........
हटाएंचाकलेट डे मुबारक.
जवाब देंहटाएंaapko bhi..
हटाएंप्यार का जब कोई नाम नहीं तो रिश्तों का कोई नाम क्यों ...
जवाब देंहटाएंचाकलेट दे की मुबारकबाद ...
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुमन सिन्हा जी का परिचय देखें यहां ...
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं पूनम जी
जवाब देंहटाएंthanx yashvant...
जवाब देंहटाएंisse bhi jyada khushi hui jab aapke papa ne meri ek kavita par apna vichaar diya....!!
मैंने अनुचित अर्थ लिए जाने के प्रतिवाद मे अपना दृष्टिकोण दिया था। वैसे चूंकि मेरे विचार प्रचलित विचारों के विपरीत होते हैं ज़्यादातर विचार देने से बचता हूँ। इस कविता के संदर्भ मे भी मेरा दृष्टिकोण यह है कि 'प्यार' त्याग पर आधारित होता है और बगैर त्याग भावना के प्यार हो ही नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंbahut sunder aaj ke choctate diwas ki terh meethi
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne....
हटाएंshayad isiliye kaha gaya hai......
"kuchh meetha ho jaaye....."
नाम की तलाश में भावनायें सिमटने लगती हैं...
जवाब देंहटाएंsahi kaha Praveenji......
हटाएंbhavnaayen bana ke rakhiye...
rishte to hain hi nibhaane ke liye.....
बहुत सुन्दर रचना पूनम जी ! बधाई !
जवाब देंहटाएंshukriya Yashvant.....
जवाब देंहटाएंरिश्तों को नाम मिले या ना मिले कोई मलाल नहीं...बस उनकी स्निग्धा कम ना हो...सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंप्यार जिया जाता है, निभाया नहीं जाता!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!
आज दोबारा इसे पढ़ कर भी उतना ही आनंद मिला ! मन को स्फूर्त करने वाली बेहतरीन प्रस्तुति ! प्रेम दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंdhanyvaad Sadhnaji...
हटाएंबेहतरीन भाव....
जवाब देंहटाएंनेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
पूनम जी सबसे पहले तो विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ..
जवाब देंहटाएंआपने मेरे अदना से कमेंट पर एक खूबसूरत रचना नज़र कर दी..मेरा सौभाग्य है..
मैं जाने कैसे बेखबर थी...
अभिभूत हूँ...
आपका बहुत आभार...आपकी लेखनी चिरायु हो...
स्नेह एवं शुभकामनाएँ...