आजमाइश पे भी अपनी, गौर फरमाएं ज़रा,
दूसरों को आजमाने में भी जल जाते हैं हाथ !
न करें फिकराकसी यूँ दूसरों के हाल पे,
गौर करिए खुद पे भी,जब छोड़ देता है वो साथ !
आते जाते यूँ तो रहते है न जाने कितने शख्स,
है वही अपना तेरा, जो जिंदगी भर देता है साथ !
इस जहाँ में किसको हम अपना कहें और क्यूँ कहें?
जब जरूरत आ पड़ी, न था कोई भी मेरे साथ.....
हाथ छोड़ा उसने ये कह कर बड़े ही नाज़ से,
कौन हूँ मैं? और क्या हूँ? अपनी खुदगर्जी के साथ !!
उफ़ ! बहुत दर्द भर दिया।
जवाब देंहटाएंsundar rachna...kadvai sachhai..sadda shabdon men
जवाब देंहटाएंkoi to milegaa kabhee
जवाब देंहटाएंtalaash zaaree rakhnaa
ummeed naa chhodnaa kabhee
वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन कविता।
सादर
जीवन के कटु सत्यों को सम्हालना पड़ता है..
जवाब देंहटाएंSach Ko liye Umda Panktiyan.....
जवाब देंहटाएंvah bahut sundar hakikat ko khoobsoorat andaj me bayan kr diya apane.
जवाब देंहटाएंसच है जीवन भर कोई विरला ही साथ देता है ... जो देता है उसकी कद्र होनी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंbade hi sundar tareeke se punam jee aapne zindgi ke falsafe ko bataaya hai./
हटाएंaap bahut dino se mere blog par nahi aayi hai ./
तीसरा शेर सबसे उम्दा.....
जवाब देंहटाएंफिकराकशी होना चाहिए शायद |
sach kaha hai..... achi rachna hai... badalte waqt ke sath bahut kuch badal jaata hai... par insaaan ajmaane se kaha baaj ata hai... keep writing... yu hi ... jyu hi... keep writing....
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