लोग न जाने क्यूँ
इतने रिश्ते लगाते हैं सबसे...
फिर शुरू हो जाता है
उन्हीं का हर रिश्ते के साथ
काउंट-डाउन....
कोई न कोई जोड़-घटाव
और न जाने कितनी आलोचनाएँ....!
बेवज़ह....!!
लगे रहते हैं दूसरों के
रिश्तों को नाम देने में
और अपने ही कुछ रिश्तों को
नाम देने से कतराते हैं.........
न जाने क्यूँ .........??
Life is
जवाब देंहटाएंLike a spiders web
Many tiny strands of
Desire, relations
Greed and love
Woven together
Makes it complex
If desires are fulfilled
Life looks rosy
If relations with
People are nice
Life is happy
Without greed
Life becomes easy
When love is
All around
Life is like
A merry go around
08-02-2012
126-37-02-12
संबंधों का बंध स्वतः ही बाहर छलका जाये तो,..
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता है।
जवाब देंहटाएंवास्तविकता भी यही है लेकिन 'न जाने क्यों ?' का प्रश्न हमेशा खड़ा रहता है।
सादर
चर्चा मंच तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद....!!
जवाब देंहटाएंन जाने क्यूँ...सुन्दर प्रश्न है आपका.
जवाब देंहटाएंअब मैं सोच रहा हूँ कि
न जाने क्यूँ ...आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आ पा रहीं हैं.
आपके सुवचन मेरे लिए सदा ही प्रेरक और अविस्मरणीय होते हैं.
आपका इन्तजार करता रहता हूँ ,पूनम जी.
बहुत गंभीर प्रश्न है आपका ..ना जाने क्यों ??
जवाब देंहटाएंयह एक ऐसा प्रश्न है जो कभी समाप्त नहीं होता |भावपूर्ण प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
sahi kaha...
जवाब देंहटाएंप्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो...
जवाब देंहटाएंमगर रिश्ता मुक्कमल तभी होता है ना जब इसको कोई नाम मिले....
सुन्दर रचना..
इंसानियत का रिश्ता सबसे गहन है शायद इससे ऊपर तो सब छाया मात्र है । क्या ये कम नहीं की हम सब एक ही परमपिता की संतानें हैं ।
हटाएंसही कहा है भाई.......
हटाएंशुक्रिया पूनम दी ।
हटाएंलगे रहते हैं दूसरों के
जवाब देंहटाएंरिश्तों को नाम देने में
और अपने ही कुछ रिश्तों को
नाम देने से कतराते हैं.........
Aisa Aksar hote dekha hai.... Behtreen rachna
सुंदर विचार पूनम जी ..
जवाब देंहटाएंथोड़ा सा अगर और स्पष्ट हो जाता कि आप किन रिश्तों कि बात कर रहे हो तो बेहतर होता..
क्योंकि आज का व्यक्ति आजकल दोहरे रिश्ते जी रहा है जीता है ...स्वीकार करे या न करे एक वो हैं जो उसे मिलते हैं ...जैसे बाप का मकान और जायदाद मिलती है न वैसे ही कुछ रिश्ते भी समाज देता है ...कुछ वो खुद बनाता है ...शायद ऐसों को ही आपने इंगित किया है ??
अगर मैं सही हूँ तो ..वो ज्यादा प्यारे होने स्वाभाविक ही हैं ...कृपया मेरी टिप्पड़ी को स्त्री पुरुष के विभेद से ऊपर उठकर देखेंगी तो अच्छा लगेगा मुझे.
बहुत गहन और बहुत सच्ची बात कहती अहि ये पोस्ट.....कुछ रिश्ते बेनाम ही रहते हैं ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है भाई.......!!
हटाएंरिश्तों का अनाम रहना भी कई बार इसकी उपलब्धि है...बहुत गहन और सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंइसी का नाम दुनिया है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रश्न आपने पुछा है इस कविता में जिसके उत्तर में हम सबको अपना दिल और दिमाग टटोलना होगा. सुंदर प्रस्तुति.
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