ज़िन्दगी की बिसात पर
मोहरे इंसानों के चलता है कोई
कभी रिश्तों के रूप में,
कभी दोस्तों के रूप में,
कभी भावनाओं के रूप में,
तो कभी भाग्य के रूप में....
और भी न जाने
किन-किन रूपों को इस्तेमाल करने की कोशिश करता है
अपनी ही बात को सही साबित करने के लिए
न जाने कौन-कौन सी
चालें चलता है शकुनी की तरह..
साम,दाम, दंड,भेद
सब के सब पासे की तरह
हाथों से रगड़ कर
फेंक देता है एकबारगी.....
लेकिन क्या होगा इससे?
जीत भी गया तो क्या पा लेगा वह??
जिसका सब कुछ
दांव पर लगाने की कोशिश में लगा है
उसे गर हरा भी दिया तो
क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?
क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?
जवाब देंहटाएंसन्देश देती रचना .....
bahut achchi lagi .
जवाब देंहटाएंmridulaji avam amarjeetji....
जवाब देंहटाएंdhanyawaad mere blog per aane ke liye...
पूनम जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
उसे गर हरा भी दिया तो
क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?
.........सन्देश देती रचना
आपने तो हमारे दिल कि बात कह दी दोस्त जिंदगी कुछ एसी ही है और हर कोई अपनी तरह सेभुनाने मै लगा रहता है किसी को किसी के एहसासों कि कोई कदर नहीं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एहसासों से भरी रचना !
ज़िंदगी की बिसात पर यूँ ही मोहरे चलते हैं ..खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
बहुत सुंदर और प्रभावी भावभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है! बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सन्देश देती प्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ....
प्रेरणाप्रद ..........रचना |
बहुत अच्छी रचना है पूनम जी...
जवाब देंहटाएंइंसान जानता है कि वो एक मोहरे से अधिक कुछ नहीं, फिर भी हर सफ़लता का श्रेय खुद को, और विफ़लता का दोष तकदीर को देता रहा है.
बेहतरीन रचना'.
जवाब देंहटाएंशब्दों और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है
जवाब देंहटाएंसही कहा पूनम जी, ज़िंदगी की बिसात पर इंसान मोहरा ही तो है. सुन्दर सारगर्भित रचना..
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