रात की खामोशियाँ बेचैन कर देती हैं जब
बेखुदी में यूँ ख्याल बन बन के आ जाते हो तुम....!
तेरे आने का नहीं अब मुझको रहता इंतज़ार
मेरे ख़्वाबों में कभी भी यूँ चले आते हो तुम....!
बाद मुद्दत के कभी गर मिल गए हम तुम कहीं
मैं तुम्हें पहचान लूंगी कैसे पहचानोगे तुम....!
है अनोखा तुझसे रिश्ता कोई ये जानेगा क्या
साथ न हो कर भी मेरे पास ही रहते हो तुम....!
मैं तुम्हें पहचान लूंगी कैसे पहचानोगे तुम ?
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह
ऐसे कैसे नहीं पहचान पायेगा किसी बेचारे पर तोहमत लगाना अच्छी बात नहीं हाँ :)
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं...सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंयादों में होने का भाव जो छिपा रहता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर:-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
.
जवाब देंहटाएं… क्या कहूं आपके इस रंग के लिए !
बस …
काश ! काश ! काश ! जैसे भाव प्रतिक्रिया में आ रहे हैं
एक के बाद एक …
काश ! …
काश ! … …
काश ! … … …
काश ! … … … …
और सबसे बड़ा काश यह कि -
काश ! ऐसी ख़ूबसूरत रचना हम भी लिख पाते … … … !
sunder bhaw......
जवाब देंहटाएंVery beautifull...
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर अहसास......जज़्बात पर कुदरत के नज़ारे भी देखें।
जवाब देंहटाएंanokha pyara sa rishta:)
जवाब देंहटाएंमन से पास होने का अहसास ही
जवाब देंहटाएंपास होने की खास पहचान करा सकता है.
सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
मन से पास होने का अहसास ही
जवाब देंहटाएंपास होने की खास पहचान करा सकता है.
ati sundar..bahut khoob.