कुछ अनकहा सा .....
कई बार मन में
शब्द उमड़-घुमड़ के
जुड़ते से चले जाते हैं
अपने आप ही,
और अनजाना सा अनमना सा
कुछ बन जाता है अपने आप ही..!
मन चाहता है कि उतार दे
मन की बातों को कहीं...
कभी लिख कर..
या फिर कम से कम
किसी से share ही कर लें....!
लेकिन न वो पन्ने मिलते हैं
जिस पर हम लिख सकें...
और न वो शख्स ही....
जिससे हम मन की बातें कह सकें...
और सब अनलिखा,अनकहा सा
बहुत कुछ रह जाता है
हमारे साथ ही....!!
लेकिन न वो पन्ने मिलते हैं
जवाब देंहटाएंजिस पर हम लिख सकें...
और न वो शख्स ही....
जिससे हम मन की बातें कह सकें...
अक्सर ऐसा होता है।
सादर
यशवंत...
हटाएंआपके प्रत्युत्तर में ही लिखा था कभी...!
आज एकाएक नज़रों के सामने से गुजरी रचना तो पोस्ट कर दी...!
मित्र भी कैसे कैसे मदद कर जाते हैं....! :))
धन्यवाद...!!
सच .... बहुत कुछ रह जाता है अनलिखा ....
जवाब देंहटाएंमन का कहना, हो ही जाये।
जवाब देंहटाएंहवाओं में बिखर कर.. अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... बहुत ,मुश्किल से सच्चा दोस्त मिलता है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखा है ... भाव पूर्ण ...
सही कहा है दी.....होता है ऐसा।
जवाब देंहटाएं......और सब अनलिखा,अनकहा सा
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ रह जाता है!......
वाह! पीडा न कह पाने की और न सुने जाने की भी!
सुन्दर चित्रण!