जान,रूह और जिस्म....
क्या देखा है किसी ने...?
देखा होगा आपने भी !
मैंने भी देखा है अक्सर..
एक जान...
जो परेशान रहती है
कभी खुद से..
कभी दूसरों से !
कभी अपने से
सुकून पाए भी तो
गैर रहम नहीं करते
अक्सर जान की
परेशानी की वजह
ये दूसरे ही हो जाते हैं.
वो कहा भी जाता है न...
जान के पीछे हाथ धो के पड़ना !
एक रूह......
जो शांत है
जो होता रहा है...
जो हो रहा है
सब देखती रहती है
जान की बेचैनी पर
हंसती है कभी-कभी
न हैरान....
न परेशान...!!
और जिस्म......
बेवजह इन दोनों से
सताया हुआ....
इन दोनों में ही
तालमेल बैठाने में
लगा रहता है बेचारा......!!!
वाह...
जवाब देंहटाएंक्या त्रिकोण है...एक दूजे बिना अधूरे....
अनोखी रचना...
अनु
क्या बात है पूनम जी.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति अचम्भित
कर देती है.
वो भी न जाने क्या कह देते हैं जी.
hutke....achchi lagi.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है..जिस्म की मोटाई भी तो उसी जान की मेहरबानी से है जो मनपसंद भोजन की दीवानी है..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
साम्य एक तो लाना होगा...
जवाब देंहटाएंतीनो ही आयामों का शानदार चित्रण करती ये पोस्ट लाजवाब है ।
जवाब देंहटाएंKHOOBSOORAT RACHANA....
जवाब देंहटाएंbechara jism tal mel baithate baithate lash me tabdeel ho jata hai...!!
जवाब देंहटाएंbehtareen !