कई बार हमारे ज़ज्बातों का
क़त्ल हो जाता है किसी के हाथों
और न हम इलज़ाम दे पाते हैं,
न कातिल को ही इल्म होता है
कि उसने क़त्ल किया है,
और कई बार मालूम होने पर भी
ज़िम्मेदारी लेने को तैयार भी नहीं होता है...
क्यूँ कि वो ज़ज्बात हमारे होते हैं..
उसके नहीं....!
हाँ,अपने ज़ज्बातों का ढिंढोरा
हाँ,अपने ज़ज्बातों का ढिंढोरा
वो सारे जहाँ में ज़रूर बजा आता है...!!
और ज़ज्बातों का क्या है......
वो खामोश ही रहते हैं....
और ज़ज्बातों का क्या है......
वो खामोश ही रहते हैं....
हाँ,मरते वक़्त ज़रूर
हमें हैरत भरी नज़र से देखते हैं
कि हमने ऐसा होने क्यूँ दिया...!!
हमें हैरत भरी नज़र से देखते हैं
कि हमने ऐसा होने क्यूँ दिया...!!
क्या कहूँ पूनम जी....
जवाब देंहटाएंतो फिर क्यूँ न सहेजा जाए जज्बातों को....किसी कातिल की निगाहों से दूर....
सस्नेह
अनु
sunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंजज्बातों से खेलना तो उनका काम था..
जवाब देंहटाएंहम ही खुद को ना बचा पाए..
ह्रदय द्रवित करती रचना..
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita Poonam ji.
जवाब देंहटाएंbehad zazbati......achchi lagi.
जवाब देंहटाएंदी बहुत गहन और खुब्सु५रति से जज्बातों के काट का बयां किया है.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं