ओ मेरे यार जुलाहे....
मुझको भी सिखला देते तुम
शब्दों का बुनना ताना बाना...
तो मैं भी कुछ कुछ बुन लेती
तेरे शब्दों से ही मैं भी
कोई सुन्दर जाल पिरो लेती !
कुछ कह लेती...
कुछ सुन लेती !
या......
सुन सुन के तेरी बातों को
कुछ चुन कर तेरे शब्दों को
कुछ मोती मेरे सपनों के
फिर गूंथ नई माला कोई...
बालों में अपने...
या फिर..
तेरे दरवाजे पे सजा देती !!
ओ मेरे यार जुलाहे....
सिखला देते कुछ गुन अपना
शब्दों के जाल पिरोना,
तितली बन कर शब्दों से..
रंग चुरा लेना,
बादल बन के सागर से..
बूँद चुरा लेना,
भंवरा बन के..
तेरे ही होठों से चुपके से
कोई गीत चुरा लेना
ओ मेरे यार जुलाहे .....
सिखला देते कुछ आज मुझे...
तो मैं भी कुछ कुछ बुन लेती..
कुछ देर सांस ले लेती !
कुछ देर और जी लेती !!
गुलज़ार साहब को न पढ़ती तो शायद कभी लिख नहीं पाती.....
जवाब देंहटाएंढेरों मुबारकबाद उन्हें...और हम सब को....
अनु
गुलज़ार को जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही अच्छा लिखा है।
सादर
ढेरों शुभकामनायें, गुलजार साहब को..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना ....
जवाब देंहटाएंक्या खूब! गुलज़ार साहब को जन्मदिन की बधाई ,
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