पूनम जी, मोम के बहाने आपने बहुत बडी बात कह दी।एकदम गागर में सागर समा गया हो जैसे।............डायन का तिलिस्म!हर अदा पर निसार हो जाएँ...
गर्मी में मोम पिघल जाता है..
yaee khaasiyat mom kee,kabhe patthar bantee,kabhee pighaltee,
सटीक ....
बहुत खुबसूरत है पोस्ट।
सचमुच ! जैसे हम स्वयं ही अपनों को दूर करते हैं फिर उन्हें करीब पाना चाहते हैं..
बहुत खूब!सादर
आपकी पोस्ट आज 23/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई हैकृपया पधारेंचर्चा - 980 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सटीक भाव बहुत सुन्दर:-)
बहुत गहन भाव छिपा है इन पंक्तियों में व्यक्तित्व में परिवर्तन बार बार नहीं होता एक बार कठोर हो गया तो फिर से उसका पिघलना नामुमकिन है
पूनम जी, मोम के बहाने आपने बहुत बडी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंएकदम गागर में सागर समा गया हो जैसे।
............
डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
गर्मी में मोम पिघल जाता है..
जवाब देंहटाएंyaee khaasiyat mom kee,kabhe patthar bantee,kabhee pighaltee,
जवाब देंहटाएंसटीक ....
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत है पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसचमुच ! जैसे हम स्वयं ही अपनों को दूर करते हैं फिर उन्हें करीब पाना चाहते हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी पोस्ट आज 23/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 980 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सटीक भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
:-)
बहुत गहन भाव छिपा है इन पंक्तियों में व्यक्तित्व में परिवर्तन बार बार नहीं होता एक बार कठोर हो गया तो फिर से उसका पिघलना नामुमकिन है
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