दूर गगन तक फैल गयी है तरुनाई... झूम झूम के घूंघट खोले पुरवाई , फूल फूल पे भौंरें डोलें...मुख चूमें... कली कली अनजानी खुद ही शरमाई , पीली सरसों ने सुगंध बिखरा दी अपनी... गाने लगी हवा.....लो फिर बसंत आई...!!
आपकी यह छोटी-सी बसंत रचना पढ़ कर आनंद आ गया ... दूर गगन तक फैल गई है तरुणाई झूम-झूम के घूंघट खोले पुरवाई ... मन बार बार कह रहा है वाह ! वाऽह ! वाऽऽह ! बहुत ख़ूबसूरत ! वाऽह ! क्या बात है ! :)
बसंत पंचमी एवं आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं ! राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वागत हे बसन्त।
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जवाब देंहटाएंखुबसूरत बसत का स्वागत है
latest postलुटेरे !
सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंवाह ..वाह ...बहुत खूबसूरत ख्याल ...सुन्दर शब्द संयोजन।
जवाब देंहटाएंलो फिर ऋतु बसंत आई...सुंदर भाव और शब्द..
जवाब देंहटाएंsunder swagat......vasant ka.
जवाब देंहटाएंशुभागमन ।
जवाब देंहटाएंबसंत का हार्दिक स्वागत है ...
जवाब देंहटाएंआदरणीया पूनम जी
नमस्कार !
आपकी यह छोटी-सी बसंत रचना पढ़ कर आनंद आ गया ...
दूर गगन तक फैल गई है तरुणाई
झूम-झूम के घूंघट खोले पुरवाई ...
मन बार बार कह रहा है वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
बहुत ख़ूबसूरत !
वाऽह ! क्या बात है !
:)
बसंत पंचमी एवं
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
आप सभी सुधिजनों का धन्यवाद.....!
जवाब देंहटाएंनव जीवन नव सृजन की आहट..... वाह
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