मौन...........
तब--अप्रैल,१९८४
मौन भी अभिव्यक्ति है !
यदि तुम समझ सको तो !!
मैं क्या कहूं ?
कैसे कहूं ?
कब कहूं तुमसे ?
जानती नहीं !
शायद....
कभी न कह सकूं
अपने मन की बातें !
तुम्हें स्वयं समझाना होगा -
मुझे और
मेरे मौन को भी .
पढ़नी होगी मेरी आँखों की भाषा ,
शायद---
ये मेरे मौन को कुछ शब्द दे सकें .
समझनी होगी तुम्हें
मेरे होठों की थरथराहट ,
शायद ये मेरे शब्दों को स्वर दे सकें .
मेरे मौन को
यदि तुम नहीं समझ सके
तो कौन समझेगा ?
शायद मैं -
मन की बात कभी न कह सकूंगी !
यही आशा है तुमसे
कि तुम मेरे अस्तित्व को
अपने में समेट लो !
इसीलिए आई हूँ तुम तक
कि तुम....
मेरी मूक अभिव्यक्ति को समझ सको !!
मौन..........
अब---2008
मौन भी अभिव्यक्ति है !!
अब ये समझे हो तुम !!
शायद उस समय.....
मैं अपरिपक्व थी या फिर तुम....
पता नहीं....??
चलो,मेरा ये इंतज़ार भी
ख़त्म अब हुआ.....!!
इतना लम्बा अरसा बीत गया
पर मौन की भाषा
अब समझे तुम..!!
किसी की आँखों की,
किसी के कांपते होंठों की ,
और किसी के स्पर्श की सरसराहट
ये अभिव्यक्ति तुम्हें दे पाई.....
गनीमत है,
इस ज़िन्दगी में.....
तुम्हारी ये अपूर्णता तो
पूर्ण हो पाई...!!!
वाह!बधाई हो उसने मौन की भाषा समझ तो ली…………अभिव्यक्ति को सम्पूर्णता मिल तो गयी…………अन्दाज़-ए-बयाँ खूबसूरत रहा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,गहन चिंतन को दर्शाती भावपूर्ण प्रस्तुति......शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमौन तब और मौन अब.
जवाब देंहटाएंमौन के भी अर्थ बदल जाते हैं.
बहुत गहन एवं नए आयाम की कविता.
आपकी कलम को सलाम.
maun rehkar bhi sab kuch keh diya
जवाब देंहटाएंइतने वर्षों में ही सही मौन को समझा तो ..बहुत अच्छी लगीं दोनों रचनाएँ ..
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna
जवाब देंहटाएंsab samajhte he
phir bhi moun rahate he
sunder kvitaen
जवाब देंहटाएंmaun abhivykti hi hota hai magar ise smjhna bda muskil hai .
मौन पर दोनों रचनाएँ सुन्दर हैं.
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा यदि पहले ही समझ ली होती तो अभिव्यक्ति के दो छोर इक साथ केसे नजर आते :)
जवाब देंहटाएंमौन की अभिव्यक्ति की दोनों अत्युत्तम है !
बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
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