आप किसी चीज़ को पकड़ कर
रखने की कोशिश करते हैं,
तो उसके छूटने पर
आपको दर्द और दुःख का
एहसास होता है.
जब हाथ ही खुला हो
तो छूटने का या--
छोड़ने का दर्द नहीं होता..
हथेली पर,
रह जाता है.....
उसका एक मीठा सा एहसास !
जिसे आप जहाँ चाहें,
जब चाहें...
महसूस कर सकते हैं !!
बंद मुट्ठी
खुलने पर तनाव का
एहसास दिलाती है !!
फिर बात हथेली की हो
या दिल की...............!!!
khubsurat ahsas , achhi lagi aapki rachna , badhai
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी अहसास.
जवाब देंहटाएंसुन्दर नज़्म.
आपकी कलम को शुभ कामनाएं.
बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंजब किसी से कोई expectations ना हो तो बाद में दुःख नहीं होता....
जवाब देंहटाएंबढ़िया संवेदना
बहुत सुंदर रचना ............बसंत पंचमी की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंanupam sochti hain aap.wah.
जवाब देंहटाएंऐसी अनुभूति सभीको आती है. लाजवाब रचना!बसंत पंचमी की शुभकामनाये पुनमजी!!!!!
जवाब देंहटाएंWAAH POONAM JI ..KAMAAL HAI
जवाब देंहटाएंपूनम जी आपका ब्लॉग और रचनाएं अच्छी लगीं ... परसों ११ फरवरी को आप कि यह रचना चर्चामंच पर होगी... सादर
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com...वहाँ आ कर अपने विचार से अनुग्रहित करें और टिपण्णी भी दें...
bahut sunder....kisi ko bandhne se khone ka dar hamesha rhta aur agar mukat kar do to kitna sukun...ati sunder...
जवाब देंहटाएंफिर बात हथेली की हो
जवाब देंहटाएंया दिल की.......!!!
कितने साहसी होते हैं वे लोग जो हथेला या दिल खुला रख कर मुस्कराते हुए जी लेते हैं।एक साहसिक सुंदर रचना।
सही कहा...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति...
अंदाजे बयां कुछ और है । भई वाह !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहम्म्म्... सही तो है....!
जवाब देंहटाएंपर सहमति धीरेंद्र जी से " कितने साहसी होते हैं, वो लोग जो हथेली खुला रख के मुस्कुरा लेते हैं।"