ज़िन्दगी एक खेल है-
अपूर्णता को पूर्ण करने का !!
और सभी खेलते हैं ....
जाने अनजाने !!
ज़िन्दगी के शुरूआती दौर में
कुछ लोग समझ ही नहीं पाते
इस खेल को,
और कुछ समझदार
खेलते है इसे समझ- बूझ कर !!
हर रिश्ता,हर सम्बन्ध
एक जाना-बूझा....
समझ कर बनाया गया.....
कहीं से कुछ पाने की इक्छा
कहीं कुछ देने की चाह....
सब कुछ लेन-देन पर......
भौतिक,शारीरिक,भावनात्मक और संवेदनात्मक......
भले ही वह किसी
अनुभूति को पूर्णता देने वाला हो,
पर जान-बूझ कर
सोच-समझ कर बनाया गया हर रिश्ता
ज़िन्दगी में कहाँ तक
पूर्णता दे पायेगा.....
पता नहीं..........???
गहन चिन्तन को दर्शाती शानदार कविता।
जवाब देंहटाएंसही दिशा का आकलन अनुभव के बाद ही होता है ..और यह जरुरी भी है ...आपकी कविता में मानवीय संवेदना को सशक्त तरीके से अभिव्यक्त किया गया है
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन को दर्शाती भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder prastuti
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka dhanyavaad......!!
जवाब देंहटाएंयदि पूर्णता मिल गयी तो ज़िंदगी जियेंगे कैसे ? गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंek aur khoobsurat kavita pahle ki tarah....
जवाब देंहटाएंbahut khoob peom hain
जवाब देंहटाएंand blog kafi accha hain
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हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तन को दर्शाती शानदार कविता| धन्यवाद्|
जवाब देंहटाएं'सोच-समझ कर बनाया गया हर रिश्ता
जवाब देंहटाएंजिंदगी में कहाँ तक पूर्णता दे पायेगा
पता नहीं .....'
जिंदगी की पूर्णता क्या केवल किसी रिश्ते से ही पूर्ण
हो सकती है.मानव अकेला ही आता है और फिर चाहे
सोच समझ कर रिश्ते बने या बैगर सोचे उनको साधना ही
जीवन जीने की कला है क्योंकि जब मानव यहाँ से जाता है
तो सभी रिश्ते छोड़ने पड़ते हैं."जा दिन मन पंछी उड़ जई है ,
ता दिन तेरे तन तरुवर के सबई पात झड जई है ,घर के कहे बेग ही
काडो,भूत बने कोई खाइऐ."
आपकी यह रचना एक बहुत गहरी और संवेदनशील सोच की ओर इशारा करती है!
जवाब देंहटाएंबहुत विचार पूर्ण गहन लेखन, मनोरंजन से परे व विचारोत्तेजक रचना!