जहाँ आस्था है..
वहाँ विश्वास है...!
जहाँ प्रेम है..
वहां समर्पण है...!
और जहाँ सादगी है..
वहाँ ये सब एकसाथ हैं...!
असल में हमने
अपना स्वाभाविक रूप ही
खो दिया है कहीं...!
सादगी न जाने
कितनी परतों में
छुप गयी है...!!
हर चेहरे पर न जाने कितने
मुखौटे चढ़े हुए हैं कि...
सादगी को अपना चेहरा
आजकल खोजे नहीं मिल रहा है...!!
देखिये तो....
आपके पास कितने मुखौटे हैं...??
धर्मशाला से.....
18/11/2014
बढ़िया
जवाब देंहटाएंसही है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंकल 07/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
यशवंत ढेर सा धन्यवाद...
हटाएंयशवंत ढेर सा धन्यवाद...
हटाएंसच सादगी वाले अब नज़र नहीं आते ...अब तो तड़क भड़क देखि जाती है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सार्थक चिंतन ....
kaphi sahi kaha.... sadgi mein adbhut Shakti aur sahas hai... !!nice thought and well written!
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