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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

हमारी बज़्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...






हमारी बज्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...
नए परवाने आ जाएँ...बुलाने आ गए हैं वो...

बहुत शातिर है कातिल वो निशां अपने न छोड़ेगा...
मगर हम भी नहीं हैं कम...बताने आ गए हैं वो... !

किनारे पर खड़े हो करके वो आवाज़ देते हैं...
बड़े अंदाज़ से नैय्या डुबाने आ गए हैं वो...

मेरे ख्वाबों खयालों में कभी चुपके से आ कर के
मेरी आँखों से नींदों को चुराने आ गए हैं वो...!

न जाने कब से था मायूस दिल का बागबां दिल मेरा 
गुलो गुलज़ार गुलशन को खिलाने आ गए हैं वो...



१७/०४/२०१४



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