अपनी अपनी दुनिया से
दो कदम बाहर सरक जाना....
कुछ तो है जरुर....!
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं..?
उम्र का ये मुकाम...
और ये खलिश....
फिर फर्ज़ क्या करना है...
यकीनन कोई तलाश तो है...!
है न....??
गर सब फर्ज़ ही करना है तो..
क्यूँ सोचें कि ये क्यूँ है...?
वो क्यूँ है....???
बस....
आज ये फर्ज़ करती हूँ....
तुम मेरे....
मैं तेरी......!!
***पूनम***
16/05/2014
badhiya kavita
जवाब देंहटाएंBahut sunder abhivyakti bhaawpurn!
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