कुछ लोगों का अपनी ज़िंदगी को देखने का एक ये भी नजरिया है....
जीवन के इस मोड़ पे हम
संबंधों में उलझे हम,
दिखा आइना दूजे को
खुद से ही अब दूर हैं हम!घर में बैर,वाह्य आत्मीयता
कहें इसे हम आध्यात्मिकता,
दूजे के सिर दोष मढें
हैं संस्कार हमारे अब
चालू और चालाक हैं सब,
अब तक जान न पाए हम
किसने चाल चली अबतक !
इस जीवन में हम जिनको
अब तक दे न सके सम्मान,
जाने-अनजाने कितने ही
किये , उठाये हैं अपमान !
माँ, पत्नी, बहना, बेटी
परिचित,भ्रात,मित्र,अजनबी,
आलोचन के हैं ये पात्र
कुछ हैं मूक,किंचित वाचाल !
करें इकट्ठा सबको आज,
भूलें अब तक किये जो काज !
कल का नहीं हमें अफ़सोस
जो होना हो, होले आज !
करें बडाई खुद की हम
इन संबंधों को मात करें...
टूटे,फूटे,कुचले,सिमटेसंबंधों को याद करें........
आओ मिलजुल कर हम आज
संबंधों का श्राद्ध करें........!!
२६-०१-२०१२
sambandhon ko ham jeete kam hein
जवाब देंहटाएंdhote jyaadaa hein
bahut saarthak aur saty hai ,par koi kahtaa nahee ,koi himmatwaalaa hee kkah saktaa hai ,
salaam aapko
I agree in toto
keep it up ,keep writing,best wishes
हम सच्चे सब सांसारिकता ...... जीवन के सारे रंग इन्ही भावों में हैं.....
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध तो जीवन हैं ..इनका श्राद्ध कर के जीवा कैसे संभव होगा ....
जवाब देंहटाएंखट्टा मीठा तो जीवन का अंग है ... चलता रहता है ...
jo sambandh bhavnaaon ke kiye kashkari ho jaayen....unke liye mansik shraaddh hi ek upaay hai...fir usse aap mukt ho sakte hain....shaayad kuchh logon ke gale ye baat n utare...shaayad kuchh ko sahi bhi lage....!!
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
सशक्त की खोज में अशक्त का त्याग..
जवाब देंहटाएंnahi bhai..
हटाएंkuch khoj hi nahin hai..! ab roz roz ka jeena aa gaya hai...isse jyada kuchh nahin...!!
aur ye jo likha hai....
rozmarra ki jindagi mein jo dekhti,aur sunti hun...bas usi ke aadhar par apne aap hi likha gaya koi...!!
mera ismein kuchh bhi nahin hai...na vichaar..n soch...n hi shabd hain mere...!!
दिखा आईना दूजे को,खुद की सच्चाई से दूर हैं हम,सशक्त एवं सत्य।
जवाब देंहटाएंअलग सी रचना,कुछ पराई सी,कुछ अपनी सी भी है .
जवाब देंहटाएंश्राद्ध करने पर भी यादें बाकी रह जायेंगी,
कितना अच्छा हो की blank हो जाएँ.
"यादे माझी अय़ाब है या रब,
छीन ले कोई हाफ्ज़ा मेरा."
एक गीत याद आ गया
"चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों"
.
koi upaay ho in yaadon se chhutti paane ka to mujhe bhi batayen....!! abhi to yahin tak pahunche hain....yatra zari hai...der saber shaayad panhunch hi jaayen ya fir ek aur janm inse bhi mukt hone ke liye...kyun ki jin sambandhon ke saath roz ka vasta ho unke bhi karm hamaare saath jud jaate hain aur ham unse poori tarah mukt nahin ho paate...!! aur ek bar jaan-pahachaan ho jaaye to aznabi banana bhi zara mushkil hota hai....gana gana alag baat hai...aur use jeena alag baat....shayad jindagi isi ko kahte hain....aur shaayad isiliye ham sab yahan hain bhi.....!!
हटाएंउदासी भरी और बहुत कुछ कहती हुई कविता !
जवाब देंहटाएंudaasi....!!!
हटाएंnahin to !!
हैट्स ऑफ इसके लिए|
जवाब देंहटाएंthanx brother...!!
हटाएंघर में बैर बाह्य आत्मीयता
जवाब देंहटाएंकहें इसे हम आध्यात्मिकता
दूजे के सर दोष मढ़ें
हम सच्चे सब सांसारिकता |
संबंधों के श्राद्ध से असहमत होते हुए भी यही कहूँगा की एक उच्चकोटि का चिंतन पूनम जी ..
करारा प्रहार करती आपकी ये पंक्तियाँ !!
श्राद्ध-'श्रद्धा'धातु से बना शब्द है जिसका अर्थ है श्रद्धापूर्वक किया गया कार्य। अतः शब्द प्रयोग पर उठाए गए सवाल अनभिज्ञता के सूचक हैं। कविता के भाव अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंआप जैसे गुनीजन की नज़र के नीचे से निकली रचना...वही बहुत है!
हटाएंकुछ 'विद्रोही-स्वर' लगे होंगे आपको भी...
लेकिन कभी कभी न चाहते हुए भी इस तरह के स्वर लग ही जाते हैं....!!
इतना सटीक विश्लेषण...मैं तो अनभिज्ञ इससे...जो मन में आया...बस लिख दिया..!!
धन्यवाद....
आपके जैसों के विचार बहुमूल्य और उत्साहवर्धक हैं हमारे लिए...!!
kitna sundar aur sach likha .......
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