करके बदनाम मुझे वो हुए हैं यूँ बेज़ार !
जो है जालिम वो मुझे किस तरह वफ़ा देगा !!
नासमझ मैं,यूँ करती रही एतबार-ओ-यकीन !
न समझ पाई मुझे वो भी यूँ दगा देगा !!
उसकी बातों ने किया है मुझे यूँ कत्ले आम !
मेरा कातिल क्या मेरे हक में फैसला देगा !!
उठा के हाथ कभी मागूँ भी तो क्या मागूँ !
मेरा पर्वर्दगार मुझको हौसला देगा !!
या खुदा ! बक्श दे मुझको मेरे इन रफ़ीकों से !
कभी तो तू भी मेरे हक में फैसला देगा !!
०५-०१-२०१२
क्या बात है....बेहद खूबसूरत गजल!
जवाब देंहटाएंसादर
बेहद खूबसूरत गजल।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह बहुत सुंदर पहले ही शे'र में ढेर कर दिया आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, सुंदर रचना !
बहुत ही सुंदर गज़ल पूनम जी ,
जवाब देंहटाएंये खोने पाने का लेने देने का चक्कर न जाने कब तक चलेगा !
आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा खुदा देगा......तर्ज़ पर शेर अच्छे है
जवाब देंहटाएंपरवरदिगार , बख्श - सही लफ्ज़ हैं |
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जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरती से आपने एक एक शेर लिखा है.
जवाब देंहटाएंहर शेर से दर्द ,नाउम्मीदी झलक रही है.
बहुत खूब.
बहुत ही खूब.
बहुत सार्थक प्रस्तुति, आभार|
जवाब देंहटाएंदर्द है या दर्द का समंदर है.
जवाब देंहटाएंहर शेर दर्द की कहानी कह रहा है.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंया खुदा बक्स दे मुझको मेरे इस रफीकों से ......
जवाब देंहटाएंवाह पूनम जी
गज़ब का आत्मविश्वास प्रसंसनीय !