जो अपना था दूर हो गया
जीवन से यूँ शब्द खो गया,
मन अपना ही मीत मिला जब
मन विश्राम वहाँ है पाता !
बिना बात के हम लुट जाएँ
बिन ढूंढें ही कुछ पा जाएँ,
बिना बात जब हम मुस्काएँ
मन विश्राम वहाँ है पाता !
मन है जो बिन बात ही चलता
तन है जो बिन बात सुलगता,
जीवन यूँ ही चलता रहता
मन विश्राम वहाँ है पाता !
सोच सोच के जब थक जाएँ
चलते-चलते जब रुक जाएँ,
करें बंद आँखें तब अपनी
मन विश्राम वहाँ है पाता !
सूफी अपने स्वर में गायें
मंदिर में भगवान् बुलाएं,
ये सांसें जब रुक सी जाएँ
मन विश्राम वहाँ है पाता !
क्या पाया था क्या खोया है ?
जिसने सोचा वो रोया है,
मन था, पीछे छूट गया है
मन विश्राम यहाँ है पाता !
०७-०१-२०१२
खोने -पाने से परे होकर ही मन को विश्राम मिलता है .. सुन्दर लिखा है ..
जवाब देंहटाएंमन को तो मर कर ही विश्राम मिलता है......अब ये शारीर के साथ मरता है या कोई इसे पहले ही मार देता है और मृत्यु पर भी विजयी हो जाता है वही जीवन में विश्राम पता है.........सुन्दर पोस्ट|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंkriti ko padhna bhaya.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
क्या पाया था क्या खोया है ?
जवाब देंहटाएंजिसने सोचा वो रोया है,
मन था, पीछे छूट गया है
मन विश्राम यहाँ है पाता !
बहुत ही बढ़िया।
सादर
bahot sunder.
जवाब देंहटाएंकाश वह मिल पाये, सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंमन का सक्रीय रहना बहुत जरूरी होता है ...
जवाब देंहटाएंsuindar bhaav rachna...........
जवाब देंहटाएंमन विश्राम वहाँ है पाता ....!
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करिये पूनम जी कम ही लोग यहाँ तक पहुँचते हैं !