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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

सन्नाटा......




आधी रात की तन्हाई....
बड़ी अजीब होती है !
बस ! हम ही हम
यहाँ कोई दूसरा नहीं...!
खुद कहते हम...
सुनते भी हम..!
एक अजीब सा सन्नाटा 
भीतर-बाहर...!
शरीर-मन का अजीब सा संयोग...!
जो सिर्फ 
और सिर्फ हम ही 
महसूस कर सकते हैं...!
और कोई नहीं...!
कोई भी नहीं.......



11 टिप्‍पणियां:

  1. जब सब चुप रहते हैं तब सन्नाटा बोलता है...मेरी ही आवाज़ में...

    अनु

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  3. बहुत सुन्दर साक्षात्कार शरीर और मन का ...आभार !!!

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  4. मन की विभिन्न स्थितियों का अवलोकन करना
    बहुत कुछ सिखा जाता है.

    काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
    काफी दिनों में मैं भी पोस्ट लिख पाता हूँ.

    आप मेरी पोस्ट पर आतीं हैं तो बहुत अच्छा लगता है.
    समय मिलने पर आईएगा.शायद आपको भी अच्छा लगे.

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  5. सन्नाटे की अपनी ही आवाज़ होती है .....

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  6. कभी कभी भरी भीड़ में भी यही सन्नाटा गूंजता है ....बहुत सुन्दर दी।

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  7. कल 07/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. मन के भीतर के सन्नाटे को कहती अच्छी रचना

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  9. सच है,मन के भाव बस सन्नाटे ही महसूस कर पाते हैं ...

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