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शुक्रवार, 3 जून 2011

काश....








हो रात भरी तारों वाली
महकी महकी काली काली !
उस रात के भीने आंचाल में
हाथों को डाले हाथों में !
चलते-चलते खो जाएँ कहीं 
धरती से मिले आकाश वहीँ !
आँचल का बिछौना मैं कर लूं
बाहों का सिरहना तुम कर लो !
सो जाओ तुम उस बिस्तर पर
आगोश में लेकर तुम मुझको !
है चुप धरती,आकाश है चुप  
है तारे चुप और रात भी चुप !
जब मौन हों सारी भाषाएँ
जब पूरी हों सब आशाएं !
जब तुम हो साथ नहीं कोई

बस साथ मेरे है रात यही !!


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब पूनम जी.
    खूबसूरत अहसास और नज़्म की रवानगी क्या कहिये.
    शुभ कामनाएं.

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  2. बहुत सुन्दर अहसास से भरी रचना।

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  3. भावमय करते शब्‍द हैं इस रचना के ... ।

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  4. मन के भावों बड़ा ही सुन्दर शाब्दिक रूप दिया है।

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  5. सुन्‍दर शब्‍दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।

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  6. वाह...वाह...सुभानाल्लाह.....कितनी रोमांटिक पोस्ट है.....चलो तुमको लेकर चले हम उन फिजाओं में.......शानदार ......हैट्स ऑफ

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  7. भावों का बेहतरीन संयोजन...पूनम जी

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  8. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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