हो रात भरी तारों वाली
महकी महकी काली काली !
उस रात के भीने आंचाल में
हाथों को डाले हाथों में !
चलते-चलते खो जाएँ कहीं
धरती से मिले आकाश वहीँ !
आँचल का बिछौना मैं कर लूं
बाहों का सिरहना तुम कर लो !
सो जाओ तुम उस बिस्तर पर
आगोश में लेकर तुम मुझको !
है चुप धरती,आकाश है चुप
है तारे चुप और रात भी चुप !
जब मौन हों सारी भाषाएँ
जब पूरी हों सब आशाएं !
जब तुम हो साथ नहीं कोई
बस साथ मेरे है रात यही !!
बहुत खूब पूनम जी.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अहसास और नज़्म की रवानगी क्या कहिये.
शुभ कामनाएं.
बहुत सुन्दर अहसास से भरी रचना।
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्द हैं इस रचना के ... ।
जवाब देंहटाएंमन के भावों बड़ा ही सुन्दर शाब्दिक रूप दिया है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...सुभानाल्लाह.....कितनी रोमांटिक पोस्ट है.....चलो तुमको लेकर चले हम उन फिजाओं में.......शानदार ......हैट्स ऑफ
जवाब देंहटाएंभावों का बेहतरीन संयोजन...पूनम जी
जवाब देंहटाएंकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
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