गुरु..............
जीवन में जब गुरु मिले
पकड़ लीजिये हाथ !
सांस सांस में राम रहे
कभी न छोड़े हाथ !!
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गुरु मुझको ऐसा मिला
सोये जागे साथ !
जब कभी भी ठोकर लगे
मेरा पकड़ा हाथ !!
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गुरु मुझको ऐसा मिला
मोहन सूरत जिसकी !
आँख मूँद दर्शन करून
मन में पाऊँ झाँकी !!
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सांवरिया मेरो गुरु
मन में लियो बसाय !
आँख मूँद दरसन करूँ
करूँ प्रेम चित लाय !!
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बलिहारी तेरी गुरु
मन में कियो निवास !
यह सरीर मंदिर भयो
सांस-सांस में आस !!
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गुरु मेरा खुशबू हुआ
तन-मन में बस जाय !
कहाँ गुरु कहाँ स्वयं हूँ
अंतर किया न जाय !!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार !!
आपकी गुरू समर्पित सुन्दर प्रस्तुति को सादर नमन.
जवाब देंहटाएंगुरू समर्पित सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंश्री श्री को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंगुरूजी को नमन ....भावमय पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंजय गुरुदेव - क्या ये लिखा आपका है ? या समर्पित हैं भाव ?
जवाब देंहटाएंनूतन...
जवाब देंहटाएंजयगुरुदेव..!!
जी हाँ !!
ये सारी पंक्तियाँ मेरी ही लिखी हुई हैं !
लेकिन लिखवाने वाला कोई और ही है...
ये मेरा सौभाग्य है कि मैं माध्यम बनी.!!
निःसंदेह आपकी श्रद्धा अद्वितीय है, तस्वीर भी बोलती हुई
जवाब देंहटाएंगुरु की महिमा तो हम सभी समझते हैं........ये आपके सच्चे उदगार लगे...सुन्दर|
जवाब देंहटाएंguru ji ko parnam............ jai hind jai bharat
जवाब देंहटाएंsundar rachna...
जवाब देंहटाएंआ.पुनम जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
आपकी लेखनी से आज कुछ और अधिक परिचित हुआ हूं -
गुरु मेरा ख़ुशबू हुआ , तन मन में बस जाय ।
कहां गुरू कहां स्वयं हूं , अंतर किया न जाय ॥
वाह वाऽऽह ! कुछ छंद पढ़ कर ईर्ष्या होने लगी है कि ये मेरी कलम से क्यों नहीं लिखे गए … :)
गुरू के प्रति इतने श्रेष्ठ भाव ! नमन है !!
मैंने भी गुरू चरणों में कुछ निवेदन किया है -
एक बूंद मोती बने , इक सागर बन जाय !
जितनी करुणा गुरू करे , शिष्य - मान अधिकाय !!
मेरे ब्लॉग पर यह पोस्ट समय मिलने पर देखें और सुनें कभी
गोविंद से गुरु है बड़ा
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार