मैं रहूँगी तुम्हारे साथ ही
और तुम्हारे बिना भी
और तुम्हारे बिना भी
क्योंकि...
आज मैं अपने साथ हूँ !
ये न सोच पाए तुम कि..
तुम्हारे साथ में रहने वाले को भी
ज़रुरत होती है तुम्हारी !!
जबकि हर मुश्किल क्षण में
आज मैं अपने साथ हूँ !
ये न सोच पाए तुम कि..
तुम्हारे साथ में रहने वाले को भी
ज़रुरत होती है तुम्हारी !!
जबकि हर मुश्किल क्षण में
सभी ने बराबर की भागीदारी की !
हर रिश्ते में तुम
कुछ खोजते ही रहे हो !
क्या तलाश रहे हो ?
तुम जानो ???
कुछ खोजते ही रहे हो !
क्या तलाश रहे हो ?
तुम जानो ???
वो तुम,जो अपनों को कंधा न दे पाए
आज दूसरों के लिए कंधा लिए फिरते हो !
और शायद mutual undarstanding के साथ
और शायद mutual undarstanding के साथ
कन्धा मिल भी गया है तुम्हें
जहाँ तुम अपना दुखड़ा सुना सको !
जहाँ तुम अपना दुखड़ा सुना सको !
और उसे भी ज़रुरत है तुम्हारे रुमाल की
जिससे वह अपने आंसू पोंछ सके
तुम्हारे कंधे पर सर रख कर रो सके
और इस तरह दोनों के दुःख-दर्द
तुम्हारे कंधे पर सर रख कर रो सके
और इस तरह दोनों के दुःख-दर्द
जो "अपनों" ने दिए हैं
कुछ तो कम हो सके !!
लेकिन....
जो दर्द तुमने मुझे दिए हैं
कुछ तो कम हो सके !!
लेकिन....
जो दर्द तुमने मुझे दिए हैं
ऐसा नहीं हो सकता है
उससे तुम आगाह न रहे हो
तभी तो तुम उस विषय पर
बात तक करना नहीं चाहते हो .
ऐसा नहीं है कि पुरानी बातों में
तुम्हे दिलचस्पी नहीं है....
लेकिन वो बातें जो सामने वाले की
भावनाओं से जुड़ जाती हैं
तुम्हारे लिए वही पुरानी बातें
खोखली और बकवास हो जाती हैं
और खुद के साथ जुड़ते ही
दिलचस्प और प्रेरणादायक वाकया हो जाती है !
ऐसा ही होता आया है अब तक..!
तुम्हारे दिए हर दर्द को
मुझे अकेले सहना आता है
मुझे अकेले सहना आता है
यही तो किया है मैंने अब तक !
क्योंकि..
हर मुश्किल पल में
मैंने तुम्हें खुद से अलग
क्योंकि..
हर मुश्किल पल में
मैंने तुम्हें खुद से अलग
दूर खड़ा पाया है
औरों की भावनाओं का
ध्यान रखने का दम भरने वाले तुम्हें
कब मेरी भावनाओं का ध्यान रहा है
तुम्हारे सब कटु शब्दों को भी
मैंने शिव की भांति ही पिया है
और उफ़ तक न की.....
किसी को आगाह भी न होने दिया
और तुमने बदले में
मेरे बारे में न जाने
कहाँ-कहाँ क्या-क्या कहा है
आज भी तुम्हारे अपशब्द
कंठ में समा कर जीवित हूँ
क्योंकि हमेशा ही
मुझे मेरी नज़रों के आगे
कुछ मासूम चेहरे नज़र आते रहे हैं
और उनके भ्रम को बनाए रखने के लिए
मेरे शब्द भी बेजुबान हो जाते हैं
पहले भी यही हाल था
और आज भी हालत बदले नहीं हैं
बस हमारी सोच बदल गई है
मुझे आज भरोसा है अपने आप पर, औरों की भावनाओं का
ध्यान रखने का दम भरने वाले तुम्हें
कब मेरी भावनाओं का ध्यान रहा है
तुम्हारे सब कटु शब्दों को भी
मैंने शिव की भांति ही पिया है
और उफ़ तक न की.....
किसी को आगाह भी न होने दिया
और तुमने बदले में
मेरे बारे में न जाने
कहाँ-कहाँ क्या-क्या कहा है
आज भी तुम्हारे अपशब्द
कंठ में समा कर जीवित हूँ
क्योंकि हमेशा ही
मुझे मेरी नज़रों के आगे
कुछ मासूम चेहरे नज़र आते रहे हैं
और उनके भ्रम को बनाए रखने के लिए
मेरे शब्द भी बेजुबान हो जाते हैं
पहले भी यही हाल था
और आज भी हालत बदले नहीं हैं
बस हमारी सोच बदल गई है
अपने गुरु और ईश्वर पर !
और इसीलिए मैं हूँ
आज भी तुम्हारे ही साथ
और तुम्हारे बिना भी !!
और इसीलिए मैं हूँ
आज भी तुम्हारे ही साथ
और तुम्हारे बिना भी !!
मर्म भेदती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंBAHUT HI BHAVPURN PANKTIYAN HAIN. . HAR EK SABD DIL KO CHU GAYA. JAI HIND JAI BHARAT.
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति ....नारी विष पीती है पर शिव नहीं कहलाई जाती ..यही विडंबना है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंwah bahut khub ....
जवाब देंहटाएंwah bahut hi badhiya ...
जवाब देंहटाएंekdam satya...Shiva ki shakti roop garal ki dhaar apne bheetar samahit karti hai...behad bhavpravan...bahut badhiya...
जवाब देंहटाएंआज तो लगता है मेरे मन की बात कह दी…………सारा दर्द उमड आया है।
जवाब देंहटाएंशिव का विषपान मौन था , हलक का नीलापन मौन स्वीकृति , - भरोसा है तो फिर डर कैसा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत अह्साशों को शब्द दिए है आपने.......कितना सच बयान करती है पोस्ट......शुरुआत की पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं मुझे.......प्रशंसनीय|
जवाब देंहटाएंमैंने कई बार कमेन्ट डाला पर जाने क्या बात है !
जवाब देंहटाएंaapki yah rachna bahut hi achchhi lagi ....
जवाब देंहटाएंnice ...
जवाब देंहटाएंविष और शिव के संयोग में सृष्टि का दैविक रूप है... आम जीवन में जहाँ भौतिकता ,निरीहता और छिनने का संयोग है वह कई प्रश्न खड़े करता है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिये बहुत-बहुत आभार......
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..बहुत सुन्दर लिखा है . हार्दिक धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivykti
जवाब देंहटाएंdard se bhari hui marmik kavita.
जवाब देंहटाएंnaari vish peeti hai par shiv nahi kehlati asia sambhita ji ne kaha
जवाब देंहटाएंpar naari vish par meera kehlati hai
aur apne amar prem ke saath amar ho jati hai
क्यूँ चोट करती है आपकी एक एक शब्द...क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंदिल मैं लगी सब टूटे पल को ...
घायल सभी लम्हों को संभाले...
एक एक पल को समेटे और
शब्दों के चादर से उन्हें सजाये...
आप भी जी उठेंगी और आपके शब्दों से सजी ये खूबसूरत पंक्तियां भी..कविता से खिल उठेंगे... लिखते रहिये ....खूब सवारती हैं शब्दों को अपने अंदर के भावों से....
संजय
http://chaupal-ashu.blogspot.com/
पूनम जी ...इस कविता ने पहुंचा दिया है...आपकी रचनाओं के गहन तल तक ...बड़े दिनों से आपको पढने कि ख्वाहिश थी....आज मौका लगा
जवाब देंहटाएंकविता को लेकर मुझे और कोई कमेन्ट करने का मन नही पूनम जी..बस मैं सखा भाव से आपके दर्द को अनुभव करा रहा हूँ ....!
poonam ji aapki sabhi rachnayen pard lee sabhi bahut sunder hain
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