कुछ इस तरह से
निभाई है दोस्ती हमने !
रहे न हम किसी के
खुद से भी
करली दुश्मनी हमने !!
दुहाई देते रहे
ज़िंदगी भर मुहब्बत की हम जिसको !
न की खुद
अपनी ही मुहब्बत से
दोस्ती हमने !!**********************************
ज़िंदगी भर तूने की अपनी ही मनमानी सनम !
दोष देता है तू क्यूँ हर वक़्त दूजे को सनम !!
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बन पतंगा तू जला
शम्मा किसी के बज़्म की थी !
दोष देता तू रहा
शम्मा को अपने बज़्म की ही !!**********************************
एक पतंगे की किस्मत में रोज़ कहाँ है जल जाना !
लेकिन शमा जली है हर एक रात नया एक परवाना !!
बड़ी सुंदर पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ... दूसरी रचना बहुत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...यूँ ही भी बहुत कुछ कह गयी ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता, मन को भा गयी।
जवाब देंहटाएंwah ek se badhkar ek.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ...दूसरी वाली रचना बहुत पसंद आई....
जवाब देंहटाएंइन्सान की फितरत दर्शाती है..
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंमेरा मार्गदर्शन करने के लिए...!!
कौन कहता है कि शंमा ने परवाने को बुलाया , मरने कि चाहत में वह खुद चला आया , अच्छी लगी बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंशमा - परवाने पर खूब लिखा है आपने वाह वाह.
जवाब देंहटाएंthanx for decorating my blog with your comments,moreover आप ने भी बहुत अच्छा लिखा है ,बधाई
जवाब देंहटाएंबड़ी ही सुन्दर पंक्तियाँ।
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