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शनिवार, 5 मार्च 2011

चुपके से..........





आसान  बहुत......
मन से मन की
कह देना !
मन कह दे तो-
मैं सुन लूंगी !!
खामोश ही रहना
अपनी जुबान से
न कहना कुछ
बस चुप रहना....
मन सुन लेगा,
मैं सुन लूंगी !!
न जाने कितना
कहा-सुना,
न आया अबतक
काम कभी !
जो मन समझे
तो सबकुछ है,
न समझे तो
बेकार सभी !!
बस आज
मेरी पलकों पर
धर के अपने अधर
तुम पास बैठ
न कुछ कहना !!
मन समझेगा...
मैं समझूँगी !!
आसान बहुत है
मन से मन की
चुपके से कह देना.....
तू कह दे तो
मैं सुन लूंगी !
गर तू सुन ले...
तो कह  दूँगी !!



17 टिप्‍पणियां:

  1. तू कह दे तो
    मैं सुन लूंगी......
    गर तू सुन ले तो.......
    मैं कह दूंगी
    बहुत सुंदर ....... कमाल की पंक्तियाँ हैं

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  2. बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |

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  3. वाह! अनकहा और अनसुना जब बोलता है तो बनती है, इतनी सुन्दर रचना!

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  4. मन से मन की बात ,बड़ी दिलचस्प है ."कुछ दिल ने कहा ...
    कुछ दिल ने सुना ...,कुछ भी नहीं ..कुछ भी नहीं ......
    ऐसी भी बातें होती हैं ....ऐसी भी बातें होती हैं ..." एक पुराना गाना याद आ गया .

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  5. बहुत ही भावपूर्ण एवं कोमल संवेदनाओं से भरपूर रचना ! अति सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  6. बहुत अच्छा लगता है खुद से बातें करना...एकांत में करना और भी सुख-कर होता है....किसी के द्वारा पागल कहे जाने का दर जो नहीं होता..

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  7. धर के अपने अधर
    तुम पास बैठ
    न कुछ कहना !!
    मन समझेगा...
    मैं समझूँगी !!

    waah ... kya baat hai
    atyant bhaavpoorn bahut sundar rachna
    bahut badhiya likha hai
    badhaayi
    aabhaar

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  8. वाह,वाह, वाह कविता में मन इतना डूब गया की टिप्पणी देते नहीं बन रहा है. अपने मन के वाह,वाह निनाद को रोकने के लिए मुझे टिप्पणी देनी पड़ी. मन कहीं और गहराई में ना पैठ जाये इसलिए मैंने आपकी दूसरी कविता पढ़ने का साहस नहीं किया.

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  9. बस यूँ ही "चुपके से" आपने बहुत कुछ कह दिया...अच्छी रचना|

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  10. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
    मन ने 'चुपके से' ही बहुत कुछ कह दिया.
    सलाम

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  11. देवेन्द्रजी....
    धन्यवाद !!
    अच्छा लगा कि आपने इतने ध्यान से मेरी रचना को पढ़ा !!
    कैसे मात्रा छूट गई...पता ही नहीं चला!!
    भविष्य में ध्यान रखूंगी !!

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