बड़ा सलीके से वो झूठ बोलना तेरा,
औ जान-बूझ कर नज़रें मेरी झुका लेना !
वो तेरा कहना कि मुझसे तुझे मोहब्बत है,
न चाह कर भी मेरा दिल को यूँ मना लेना !
जाने क्यूँ तोड़ दिया तूने फूल सा ये दिल,
तेरा आना भी जैसे दुश्मनी निभा देना !
हमने एतबार किया एक तेरे वादे का ,
इक जलती शमा सी जिंदगी बिता देना !
मोहब्बत कर के निभायी न गयी तुमसे,
जवाब देंहटाएंबेवफाई का ताज तुम सर पे सजा लेना!
जाने हिम्मत कैसे हुई उसकी????
बहुत खूब रचना है, वाह..
जवाब देंहटाएंबाहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंहमने एतबार किया एक तेरे वादे का ,
जवाब देंहटाएंइक जलती शमा सी जिंदगी बिता देना !
समर्पण की पराकाष्ठा है यह पंक्तियाँ ...!
वाह ... दिलकश ...
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से लिखी बातें ...
पढ़ते हुए खो गया....समर्पित प्रेम में खोई नायिका की बेवफा नायक के ह्रदय में कोई स्पंदन नहीं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
शुभकामनाएं.
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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शुक्रिया....
हटाएंवाह बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंकमाल लिखा है..उम्दा नज़्म....
जवाब देंहटाएंikइ जलती शमा सी ज़िन्दगी---- बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब | सुन्दर सी रचना |
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