प्रेम........
इंसान को
पूर्ण अपने आप में होना चाहिए,
अपने प्यार में खुद पूर्ण होना चाहिए....!
दूसरों में अपनी अपूर्णता को
पूर्ण करना चाहेंगे....
तो अपूर्णता ही मिलेगी !
या अपने अपूर्ण प्यार को
पूर्ण करना चाहेंगे तो
खुद का प्रेम भी अपूर्ण ही रहेगा...!!
दो अपूर्ण प्रेम मिल कर भी
पूर्ण नहीं हो पाते,
वो अपूर्ण ही रहेंगे...!
वो क्या साझा करेंगे
एक-दूसरे के साथ...??
अपना-अपना अपूर्ण प्रेम ही न...!!
इसीलिए हम ईश्वर से प्रेम करते हैं
और कभी खुद को खाली हाथ नहीं पाते !
उसे सब समर्पित कर के भी
कितना कुछ पा लेते हैं,
उसके लिए आंसू गिरा के भी
ख़ुशी ही मिलती है,
सुख ही मिलता हैं,
उससे लड़ कर भी
आत्मविश्वास मिलता है ,
और प्रेम तो......
अथाह.......!!
जो स्वयं में ही रीता हो वह दूसरे को क्या पूर्ण करेगा |
जवाब देंहटाएंसुन्दर दर्शन |
रीता और अपूर्ण में अन्तर होता है जी...दोबारा विचार करें...अपूर्ण दर्शन है...
हटाएंसच है.....
जवाब देंहटाएंअपने आप में पूर्णता याने आत्मसंतुष्टी होना सबसे ज़रूरी है....
सुंदर भाव ***पूनम*** जी...
:-)
आत्मसन्तुष्टि---पूर्णता नहीं है... फ़िर तो विश्व का व्यापार ही रुक जायगा...
हटाएंप्रसन्नता देने का एक ही आधार है, स्वयं प्रसन्न रहना।
जवाब देंहटाएं---सही सोच यही है.. इसी को एक अपूर्ण का दूसरे अपूर्ण को.. देते रह्ने के भाव से पूर्णता प्राप्त करना/ कराना भी कह सकते हैं..
हटाएंपूर्ण समर्पण के बिना ..प्रेम अधूरा ही रहेगा .....और उसके लिए ज़रूरी है पूर्ण विश्वास !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं पूनमजी
सही कहा सरस जी... परन्तु पूर्ण विश्वास/ आत्मविश्वास व स्वयं पूर्णता में अन्तर है...
हटाएंगहन विचार ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और अकाट्य सत्य..
जवाब देंहटाएंवाह.....अपूर्ण और सम्पूर्ण के भेद को सपष्ट करती ये पोस्ट लाजवाब है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
---इन्सान पूर्ण कभी नहीं होता ...यह पूर्णता प्राप्ति ही तो बहुचर्चित , शास्त्र वर्णित..मुक्ति व मोक्ष है जो निश्चय ही सिर्फ़ ईश्वर के प्रेम से मिलती है ...अपूर्ण..अपूर्ण दो मानवों के प्रेम से नहीं...
जवाब देंहटाएं---परन्तु सान्सारिक पूर्णता हेतु... दो अपूर्ण जीव.. स्त्री व पुरुष का मिलन पूर्णता हेतु ही होता है..तभी स्रजन होता है... यदि दोनों पूर्ण होंगे तो श्रिष्टि-क्रम रुक जायगा...
---अस्पष्ट व अधूरे विचार हैं....
क्षुद्र नदी जल भर इतराई ,
जवाब देंहटाएंअध् जल गगरी छलकत जाई .बढ़िया रचना .बधाई स्वीकार करें .
कृपया यहाँ भी पधारें रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_2612.html
मार -कुटौवल से होती है बच्चों के खानदानी अणुओं में भी टूट फूट
Posted 26th April by veerubhai
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_27.html
इंसान से प्रेम करना भी तो ईश्वर से प्रेम करना ही है ... अगर ये सब समज्ख जाएँ तो जीवन सरल हो जायगा ...
जवाब देंहटाएंप्रेम की पराकष्ठा को पार करने वाला व्यक्ति के ह्र्दय मे समस्त संसार समा सकता है,,,
जवाब देंहटाएंउसके द्वारा किसी के मन मे आघात होने से पहले , पीडा पहले उसे हो जाती है...