कुछ दिनों पहले 'जावेद अख्तर' साहेब की ये ग़ज़ल सुनी थी....
आज के परिवेश में एकदम सही सी उतरती ये ग़ज़ल.....
आपकी नज़र.......
बरसों की रस्मो-राह थी, एक रोज़ उसने तोड़ दी
होशियार हम भी कम नहीं,उम्मीद हमने छोड़ दी !
गिरहें पड़ी हैं किस तरह,ये बात है कुछ इस तरह
वो डोर टूटी बारहा, हर बार हमने जोड़ दी !
उसने कहा कैसे हो तुम, बस मैंने लब खोले ही थे
और बात दुनिया की तरफ,जल्दी से उसने मोड़ दी !
वो चाहता है सब कहें, सरकार तो बे-ऐब हैं
जो देख पाए ऐब तो,हर आँख उसने फोड़ दी !
बहुत प्यारी गज़ल
जवाब देंहटाएंसांझा करने का शुक्रिया पूनम जी.
ऐब न केवल देखने होंगे, वरन स्वीकार भी करने होंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएं"जो देख पाए ऐब तो, हर आँख उसने फोड दी"
वाह वाह.
bahut umda ghazal ..vo chahte hain tareef me unki kasheeden padhe jaaye ,baaki se unhe kya vo jehannum me jaayen.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
last me do aur panktiyaaan h-
जवाब देंहटाएंthodi si mili thi khushi, to so gyi thi zindagi
is dard ka shukriya, jo is tarah jhinjhond di.
बहुत बढिया गजल।बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवो चाहता है सब कहें, सरकार तो बे-ऐब हैं
जवाब देंहटाएंजो देख पाए ऐब तो,हर आँख उसने फोड़ दी !
...बस committment इसी को कहते हैं .....धन्यवाद पुनमजी... शेयर करने के लिए
wah very nice
जवाब देंहटाएंwaah bahut khubsurat hai gazal....shukriya sajha karne ka.
जवाब देंहटाएंgood one.
जवाब देंहटाएंbachaanee hai izzat khud kee
जवाब देंहटाएंto naa bataao haqeeqat kisi ko
naa kaho jo dekhaa tumne
dil kee baat dil mein hee rahne do
duniyaa bhaad mein jaane do
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार
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