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बुधवार, 11 अप्रैल 2012

'जावेद अख्तर' साहेब की ग़ज़ल........

कुछ दिनों पहले 'जावेद अख्तर' साहेब की ये ग़ज़ल सुनी थी....
आज के परिवेश में एकदम सही सी उतरती ये ग़ज़ल.....
आपकी नज़र.......


बरसों की रस्मो-राह थी, एक रोज़ उसने तोड़ दी
होशियार हम भी कम नहीं,उम्मीद हमने छोड़ दी !

गिरहें पड़ी हैं किस तरह,ये बात है कुछ इस तरह
वो  डोर  टूटी  बारहा, हर बार  हमने जोड़  दी !

उसने कहा कैसे हो तुम, बस मैंने लब  खोले  ही थे
और बात दुनिया की तरफ,जल्दी से उसने मोड़ दी !

वो चाहता है सब कहें, सरकार  तो बे-ऐब  हैं  
जो देख पाए ऐब तो,हर आँख उसने फोड़ दी !

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी गज़ल
    सांझा करने का शुक्रिया पूनम जी.

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  2. ऐब न केवल देखने होंगे, वरन स्वीकार भी करने होंगे।

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  3. बहुत सुंदर..

    "जो देख पाए ऐब तो, हर आँख उसने फोड दी"

    वाह वाह.

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  4. bahut umda ghazal ..vo chahte hain tareef me unki kasheeden padhe jaaye ,baaki se unhe kya vo jehannum me jaayen.

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  5. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
    चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  6. last me do aur panktiyaaan h-
    thodi si mili thi khushi, to so gyi thi zindagi
    is dard ka shukriya, jo is tarah jhinjhond di.

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  7. वो चाहता है सब कहें, सरकार तो बे-ऐब हैं
    जो देख पाए ऐब तो,हर आँख उसने फोड़ दी !
    ...बस committment इसी को कहते हैं .....धन्यवाद पुनमजी... शेयर करने के लिए

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  8. waah bahut khubsurat hai gazal....shukriya sajha karne ka.

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  9. bachaanee hai izzat khud kee
    to naa bataao haqeeqat kisi ko
    naa kaho jo dekhaa tumne
    dil kee baat dil mein hee rahne do
    duniyaa bhaad mein jaane do

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  10. अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार

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