मरने की दुआ दे वो कोई अपना ही होगा,
दुश्मन को क्या खबर कि कहाँ जी रहे हैं हम !
न जाने क्यूँ उठाते हैं हम तोहमतें उनकी,
जाने क्यूँ लफ्ज़-ए-ज़हर पिए जा रहे हैं हम !
देते हैं वो दुहाई मुझे मेरी वफ़ा की,
उनकी ही बेवफाई पे हँसे जा रहे हैं हम !
है इक सफ़र ये जिंदगी अब चल रहे हैं हम,
उम्मीद-ए-वफ़ा किसी से क्यूँ करेंगे हम !
तेरी दुआ .....तेरी बेवफाई का हो असर,
अब इस उम्मीद पर ही जिए जा रहे हैं हम...!!
उम्मीद पर दुनिया कायम है।
जवाब देंहटाएंहम तो थे बा-वफ़ा,तुमने की बेवफाई,
जवाब देंहटाएंअब तुम्हारी तरह ही हुए जा रहे हम !
खून का बदला खून...
क्यूँ पूनम जी??
सस्नेह.
मरने की दुआ दे वो कोई अपना ही होगा,
जवाब देंहटाएंदुश्मन को क्या खबर कि कहाँ जी रहे हैं हम !
दर्द की बयानगी मन को छू गयी ....खूबसूरत गजल
bhawbhini.......
जवाब देंहटाएंप्रेम में उम्मीदों का बना रहना जरूरी है ... बस ये हो तो एक चीज़ होती है आशिकों पे ... बहुत उम्दा ...
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह.........बेहद खुबसूरत ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंउम्मीद कायम रहे!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
jeene ke liye ummeed ka hona zaroori hai....
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat gazal....behad bhavpoorn.
ummeed kee vajah se hee
जवाब देंहटाएंkhaamoshee se jee rahe hein ham
chupchaap sah rahe ham
dil ko chu gayi aapki baat
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव है पूनम जी हालांकि अगर इसे गज़ल की कसूती पर रखें तो... :( :(
जवाब देंहटाएंआनंद.....
हटाएंआप इसे जहाँ मन हो रखें.....!
मेरे भाव हैं...
जो यहाँ आपके सामने हैं...!
मुझे तो 'गज़ल की कसूती' का मतलब भी नहीं पता...!
कृपया बता दें तो आगे ध्यान रखूंगी...!!
जवाब देंहटाएं♥
है इक सफ़र ये ज़िंदगी अब चल रहे हैं हम
उम्मीद-ए-वफ़ा किसी से क्यूं करेंगे हम
***Punamji***
आप भी न ,बस …!
लिखती हैं तो बस… सीधे दिल को छू'ले इस तरह …
और अंदाज़ इतना सादा बस यूं… ही… !
… … …
हृदय से शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जवाब देंहटाएंदिनांक 03/02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ........हलचल का रविवारीय विशेषांक .....रचनाकार--गिरीश पंकज जी
बहुत बढ़ियाँ...
जवाब देंहटाएंदर्द को बयां करती बेहद भावपूर्ण गजल..